318

01 दोहा

लखनहि भेण्टि प्रनामु करि सिर धरि सिय पद धूरि।
चले सप्रेम असीस सुनि सकल सुमङ्गल मूरि॥318॥

मूल

लखनहि भेण्टि प्रनामु करि सिर धरि सिय पद धूरि।
चले सप्रेम असीस सुनि सकल सुमङ्गल मूरि॥318॥

भावार्थ

फिर लक्ष्मणजी को क्रमशः भेण्टकर तथा प्रणाम करके और सीताजी के चरणों की धूलि को सिर पर धारण करके और समस्त मङ्गलों के मूल आशीर्वाद सुनकर वे प्रेमसहित चले॥318॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

सानुज राम नृपहि सिर नाई। कीन्हि बहुत बिधि बिनय बडाई॥
देव दया बस बड दुखु पायउ। सहित समाज काननहिं आयउ॥1॥

मूल

सानुज राम नृपहि सिर नाई। कीन्हि बहुत बिधि बिनय बडाई॥
देव दया बस बड दुखु पायउ। सहित समाज काननहिं आयउ॥1॥

भावार्थ

छोटे भाई लक्ष्मणजी समेत श्री रामजी ने राजा जनकजी को सिर नवाकर उनकी बहुत प्रकार से विनती और बडाई की (और कहा-) हे देव! दयावश आपने बहुत दुःख पाया। आप समाज सहित वन में आए॥1॥

पुर पगु धारिअ देइ असीसा। कीन्ह धीर धरि गवनु महीसा॥
मुनि महिदेव साधु सनमाने। बिदा किए हरि हर सम जाने॥2॥

मूल

पुर पगु धारिअ देइ असीसा। कीन्ह धीर धरि गवनु महीसा॥
मुनि महिदेव साधु सनमाने। बिदा किए हरि हर सम जाने॥2॥

भावार्थ

अब आशीर्वाद देकर नगर को पधारिए। यह सुन राजा जनकजी ने धीरज धरकर गमन किया। फिर श्री रामचन्द्रजी ने मुनि, ब्राह्मण और साधुओं को विष्णु और शिव के समान जानकर सम्मान करके उनको विदा किया॥2॥

सासु समीप गए दोउ भाई। फिरे बन्दि पग आसिष पाई॥
कौसिक बामदेव जाबाली। पुरजन परिजन सचिव सुचाली॥3॥

मूल

सासु समीप गए दोउ भाई। फिरे बन्दि पग आसिष पाई॥
कौसिक बामदेव जाबाली। पुरजन परिजन सचिव सुचाली॥3॥

भावार्थ

तब श्री राम-लक्ष्मण दोनों भाई सास (सुनयनाजी) के पास गए और उनके चरणों की वन्दना करके आशीर्वाद पाकर लौट आए। फिर विश्वामित्र, वामदेव, जाबालि और शुभ आचरण वाले कुटुम्बी, नगर निवासी और मन्त्री-॥3॥

जथा जोगु करि बिनय प्रनामा। बिदा किए सब सानुज रामा॥
नारि पुरुष लघु मध्य बडेरे। सब सनमानि कृपानिधि फेरे॥4॥

मूल

जथा जोगु करि बिनय प्रनामा। बिदा किए सब सानुज रामा॥
नारि पुरुष लघु मध्य बडेरे। सब सनमानि कृपानिधि फेरे॥4॥

भावार्थ

सबको छोटे भाई लक्ष्मणजी सहित श्री रामचन्द्रजी ने यथायोग्य विनय एवं प्रणाम करके विदा किया। कृपानिधान श्री रामचन्द्रजी ने छोटे, मध्यम (मझले) और बडे सभी श्रेणी के स्त्री-पुरुषों का सम्मान करके उनको लौटाया॥4॥