01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्रेम मगन तेहि समय सब सुनि आवत मिथिलेसु।
सहित सभा सम्भ्रम उठेउ रबिकुल कमल दिनेसु॥274॥
मूल
प्रेम मगन तेहि समय सब सुनि आवत मिथिलेसु।
सहित सभा सम्भ्रम उठेउ रबिकुल कमल दिनेसु॥274॥
भावार्थ
उस समय सब लोग प्रेम में मग्न हैं। इतने में ही मिथिलापति जनकजी को आते हुए सुनकर सूर्यकुल रूपी कमल के सूर्य श्री रामचन्द्रजी सभा सहित आदरपूर्वक जल्दी से उठ खडे हुए॥274॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
भाइ सचिव गुर पुरजन साथा। आगें गवनु कीन्ह रघुनाथा॥
गिरिबरु दीख जनकपति जबहीं। करि प्रनामु रथ त्यागेउ तबहीं॥1॥
मूल
भाइ सचिव गुर पुरजन साथा। आगें गवनु कीन्ह रघुनाथा॥
गिरिबरु दीख जनकपति जबहीं। करि प्रनामु रथ त्यागेउ तबहीं॥1॥
भावार्थ
भाई, मन्त्री, गुरु और पुरवासियों को साथ लेकर श्री रघुनाथजी आगे (जनकजी की अगवानी में) चले। जनकजी ने ज्यों ही पर्वत श्रेष्ठ कामदनाथ को देखा, त्यों ही प्रणाम करके उन्होन्ने रथ छोड दिया। (पैदल चलना शुरू कर दिया)॥1॥
राम दरस लालसा उछाहू। पथ श्रम लेसु कलेसु न काहू॥
मन तहँ जहँ रघुबर बैदेही। बिनु मन तन दुख सुख सुधि केही॥2॥
मूल
राम दरस लालसा उछाहू। पथ श्रम लेसु कलेसु न काहू॥
मन तहँ जहँ रघुबर बैदेही। बिनु मन तन दुख सुख सुधि केही॥2॥
भावार्थ
श्री रामजी के दर्शन की लालसा और उत्साह के कारण किसी को रास्ते की थकावट और क्लेश जरा भी नहीं है। मन तो वहाँ है जहाँ श्री राम और जानकीजी हैं। बिना मन के शरीर के सुख-दुःख की सुध किसको हो?॥2॥
आवत जनकु चले एहि भाँती। सहित समाज प्रेम मति माती॥
आए निकट देखि अनुरागे। सादर मिलन परसपर लागे॥3॥
मूल
आवत जनकु चले एहि भाँती। सहित समाज प्रेम मति माती॥
आए निकट देखि अनुरागे। सादर मिलन परसपर लागे॥3॥
भावार्थ
जनकजी इस प्रकार चले आ रहे हैं। समाज सहित उनकी बुद्धि प्रेम में मतवाली हो रही है। निकट आए देखकर सब प्रेम में भर गए और आदरपूर्वक आपस में मिलने लगे॥3॥
लगे जनक मुनिजन पद बन्दन। रिषिन्ह प्रनामु कीन्ह रघुनन्दन॥
भाइन्ह सहित रामु मिलि राजहि। चले लवाइ समेत समाजहि॥4॥
मूल
लगे जनक मुनिजन पद बन्दन। रिषिन्ह प्रनामु कीन्ह रघुनन्दन॥
भाइन्ह सहित रामु मिलि राजहि। चले लवाइ समेत समाजहि॥4॥
भावार्थ
जनकजी (वशिष्ठ आदि अयोध्यावासी) मुनियों के चरणों की वन्दना करने लगे और श्री रामचन्द्रजी ने (शतानन्द आदि जनकपुरवासी) ऋषियों को प्रणाम किया। फिर भाइयों समेत श्री रामजी राजा जनकजी से मिलकर उन्हें समाज सहित अपने आश्रम को लिवा चले॥4॥