01 दोहा
गुर समाज भाइन्ह सहित राम राजु पुर होउ।
अछत राम राजा अवध मरिअ माग सबु कोउ॥273॥
मूल
गुर समाज भाइन्ह सहित राम राजु पुर होउ।
अछत राम राजा अवध मरिअ माग सबु कोउ॥273॥
भावार्थ
गुरु, समाज और भाइयों समेत श्री रामजी का राज्य अवधपुरी में हो और श्री रामजी के राजा रहते ही हम लोग अयोध्या में मरें। सब कोई यही माँगते हैं॥273॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
सुनि सनेहमय पुरजन बानी। निन्दहिं जोग बिरति मुनि ग्यानी॥
एहि बिधि नित्यकरम करि पुरजन। रामहि करहिं प्रनाम पुलकि तन॥1॥
मूल
सुनि सनेहमय पुरजन बानी। निन्दहिं जोग बिरति मुनि ग्यानी॥
एहि बिधि नित्यकरम करि पुरजन। रामहि करहिं प्रनाम पुलकि तन॥1॥
भावार्थ
अयोध्या वासियों की प्रेममयी वाणी सुनकर ज्ञानी मुनि भी अपने योग और वैराग्य की निन्दा करते हैं। अवधवासी इस प्रकार नित्यकर्म करके श्री रामजी को पुलकित शरीर हो प्रणाम करते हैं॥1॥
ऊँच नीच मध्यम नर नारी। लहहिं दरसु निज निज अनुहारी॥
सावधान सबही सनमानहिं। सकल सराहत कृपानिधानहिं॥2॥
मूल
ऊँच नीच मध्यम नर नारी। लहहिं दरसु निज निज अनुहारी॥
सावधान सबही सनमानहिं। सकल सराहत कृपानिधानहिं॥2॥
भावार्थ
ऊँच, नीच और मध्यम सभी श्रेणियों के स्त्री-पुरुष अपने-अपने भाव के अनुसार श्री रामजी का दर्शन प्राप्त करते हैं। श्री रामचन्द्रजी सावधानी के साथ सबका सम्मान करते हैं और सभी कृपानिधान श्री रामचन्द्रजी की सराहना करते हैं॥2॥
लरिकाइहि तें रघुबर बानी। पालत नीति प्रीति पहिचानी॥
सील सकोच सिन्धु रघुराऊ। सुमुख सुलोचन सरल सुभाऊ॥3॥
मूल
लरिकाइहि तें रघुबर बानी। पालत नीति प्रीति पहिचानी॥
सील सकोच सिन्धु रघुराऊ। सुमुख सुलोचन सरल सुभाऊ॥3॥
भावार्थ
श्री रामजी की लडकपन से ही यह बान है कि वे प्रेम को पहचानकर नीति का पालन करते हैं। श्री रघुनाथजी शील और सङ्कोच के समुद्र हैं। वे सुन्दर मुख के (या सबके अनुकूल रहने वाले), सुन्दर नेत्र वाले (या सबको कृपा और प्रेम की दृष्टि से देखने वाले) और सरल स्वभाव हैं॥3॥
कहत राम गुन गन अनुरागे। सब निज भाग सराहन लागे॥
हम सम पुन्य पुञ्ज जग थोरे। जिन्हहि रामु जानत करि मोरे॥4॥
मूल
कहत राम गुन गन अनुरागे। सब निज भाग सराहन लागे॥
हम सम पुन्य पुञ्ज जग थोरे। जिन्हहि रामु जानत करि मोरे॥4॥
भावार्थ
श्री रामजी के गुण समूहों को कहते-कहते सब लोग प्रेम में भर गए और अपने भाग्य की सराहना करने लगे कि जगत में हमारे समान पुण्य की बडी पूँजी वाले थोडे ही हैं, जिन्हें श्री रामजी अपना करके जानते हैं (ये मेरे हैं ऐसा जानते हैं)॥4॥