01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
धर्म सेतु करुनायतन कस न कहु अस राम।
लोग दुखित दिन दुइ दरस देखि लहहुँ बिश्राम॥248॥
मूल
धर्म सेतु करुनायतन कस न कहु अस राम।
लोग दुखित दिन दुइ दरस देखि लहहुँ बिश्राम॥248॥
भावार्थ
(वशिष्ठजी ने कहा-) हे राम! तुम धर्म के सेतु और दया के धाम हो, तुम भला ऐसा क्यों न कहो? लोग दुःखी हैं। दो दिन तुम्हारा दर्शन कर शान्ति लाभ कर लें॥248॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
राम बचन सुनि सभय समाजू। जनु जलनिधि महुँ बिकल जहाजू॥
सुनि गुर गिरा सुमङ्गल मूला। भयउ मनहुँ मारुत अनुकूला॥1॥
मूल
राम बचन सुनि सभय समाजू। जनु जलनिधि महुँ बिकल जहाजू॥
सुनि गुर गिरा सुमङ्गल मूला। भयउ मनहुँ मारुत अनुकूला॥1॥
भावार्थ
श्री रामजी के वचन सुनकर सारा समाज भयभीत हो गया। मानो बीच समुद्र में जहाज डगमगा गया हो, परन्तु जब उन्होन्ने गुरु वशिष्ठजी की श्रेष्ठ कल्याणमूलक वाणी सुनी, तो उस जहाज के लिए मानो हवा अनुकूल हो गई॥1॥
पावन पयँ तिहुँ काल नहाहीं। जो बिलोकि अघ ओघ नसाहीं॥
मङ्गलमूरति लोचन भरि भरि। निरखहिं हरषि दण्डवत करि करि॥2॥
मूल
पावन पयँ तिहुँ काल नहाहीं। जो बिलोकि अघ ओघ नसाहीं॥
मङ्गलमूरति लोचन भरि भरि। निरखहिं हरषि दण्डवत करि करि॥2॥
भावार्थ
सब लोग पवित्र पयस्विनी नदी में (अथवा पयस्विनी नदी के पवित्र जल में) तीनों समय (सबेरे, दोपहर और सायङ्काल) स्नान करते हैं, जिसके दर्शन से ही पापों के समूह नष्ट हो जाते हैं और मङ्गल मूर्ति श्री रामचन्द्रजी को दण्डवत प्रणाम कर-करके उन्हें नेत्र भर-भरकर देखते हैं॥2॥
राम सैल बन देखन जाहीं। जहँ सुख सकल सकल दुख नाहीं॥
झरना झरहिं सुधासम बारी। त्रिबिध तापहर त्रिबिध बयारी॥3॥
मूल
राम सैल बन देखन जाहीं। जहँ सुख सकल सकल दुख नाहीं॥
झरना झरहिं सुधासम बारी। त्रिबिध तापहर त्रिबिध बयारी॥3॥
भावार्थ
सब श्री रामचन्द्रजी के पर्वत (कामदगिरि) और वन को देखने जाते हैं, जहाँ सभी सुख हैं और सभी दुःखों का अभाव है। झरने अमृत के समान जल झरते हैं और तीन प्रकार की (शीतल, मन्द, सुगन्ध) हवा तीनों प्रकार के (आध्यात्मिक, आधिभौतिक, आधिदैविक) तापों को हर लेती है॥3॥
बिटप बेलि तृन अगनित जाती। फल प्रसून पल्लव बहु भाँती॥
सुन्दर सिला सुखद तरु छाहीं। जाइ बरनि बन छबि केहि पाहीं॥4॥
मूल
बिटप बेलि तृन अगनित जाती। फल प्रसून पल्लव बहु भाँती॥
सुन्दर सिला सुखद तरु छाहीं। जाइ बरनि बन छबि केहि पाहीं॥4॥
भावार्थ
असङ्ख्य जात के वृक्ष, लताएँ और तृण हैं तथा बहुत तरह के फल, फूल और पत्ते हैं। सुन्दर शिलाएँ हैं। वृक्षों की छाया सुख देने वाली है। वन की शोभा किससे वर्णन की जा सकती है?॥4॥