01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
जीति मोह महिपालु दल सहित बिबेक भुआलु।
करत अकण्टक राजु पुरँ सुख सम्पदा सुकालु॥235॥
मूल
जीति मोह महिपालु दल सहित बिबेक भुआलु।
करत अकण्टक राजु पुरँ सुख सम्पदा सुकालु॥235॥
भावार्थ
मोह रूपी राजा को सेना सहित जीतकर विवेक रूपी राजा निष्कण्टक राज्य कर रहा है। उसके नगर में सुख, सम्पत्ति और सुकाल वर्तमान है॥235॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
बन प्रदेस मुनि बास घनेरे। जनु पुर नगर गाउँ गन खेरे॥
बिपुल बिचित्र बिहग मृग नाना। प्रजा समाजु न जाइ बखाना॥1॥
मूल
बन प्रदेस मुनि बास घनेरे। जनु पुर नगर गाउँ गन खेरे॥
बिपुल बिचित्र बिहग मृग नाना। प्रजा समाजु न जाइ बखाना॥1॥
भावार्थ
वन रूपी प्रान्तों में जो मुनियों के बहुत से निवास स्थान हैं, वही मानो शहरों, नगरों, गाँवों और खेडों का समूह है। बहुत से विचित्र पक्षी और अनेकों पशु ही मानो प्रजाओं का समाज है, जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता॥1॥
खगहा करि हरि बाघ बराहा। देखि महिष बृष साजु सराहा॥
बयरु बिहाइ चरहिं एक सङ्गा। जहँ तहँ मनहुँ सेन चतुरङ्गा॥2॥
मूल
खगहा करि हरि बाघ बराहा। देखि महिष बृष साजु सराहा॥
बयरु बिहाइ चरहिं एक सङ्गा। जहँ तहँ मनहुँ सेन चतुरङ्गा॥2॥
भावार्थ
गैण्डा, हाथी, सिंह, बाघ, सूअर, भैंसे और बैलों को देखकर राजा के साज को सराहते ही बनता है। ये सब आपस का वैर छोडकर जहाँ-तहाँ एक साथ विचरते हैं। यही मानो चतुरङ्गिणी सेना है॥2॥
झरना झरहिं मत्त गज गाजहिं। मनहुँ निसान बिबिधि बिधि बाजहिं॥
चक चकोर चातक सुक पिक गन। कूजत मञ्जु मराल मुदित मन॥3॥
मूल
झरना झरहिं मत्त गज गाजहिं। मनहुँ निसान बिबिधि बिधि बाजहिं॥
चक चकोर चातक सुक पिक गन। कूजत मञ्जु मराल मुदित मन॥3॥
भावार्थ
पानी के झरने झर रहे हैं और मतवाले हाथी चिङ्घाड रहे हैं। मानो वहाँ अनेकों प्रकार के नगाडे बज रहे हैं। चकवा, चकोर, पपीहा, तोता तथा कोयलों के समूह और सुन्दर हंस प्रसन्न मन से कूज रहे हैं॥3॥
अलिगन गावत नाचत मोरा। जनु सुराज मङ्गल चहु ओरा॥
बेलि बिटप तृन सफल सफूला। सब समाजु मुद मङ्गल मूला॥4॥
मूल
अलिगन गावत नाचत मोरा। जनु सुराज मङ्गल चहु ओरा॥
बेलि बिटप तृन सफल सफूला। सब समाजु मुद मङ्गल मूला॥4॥
भावार्थ
भौंरों के समूह गुञ्जार कर रहे हैं और मोर नाच रहे हैं। मानो उस अच्छे राज्य में चारों ओर मङ्गल हो रहा है। बेल, वृक्ष, तृण सब फल और फूलों से युक्त हैं। सारा समाज आनन्द और मङ्गल का मूल बन रहा है॥4॥