01 दोहा
ससि गुर तिय गामी नघुषु चढेउ भूमिसुर जान।
लोक बेद तें बिमुख भा अधम न बेन समान॥228॥
मूल
ससि गुर तिय गामी नघुषु चढेउ भूमिसुर जान।
लोक बेद तें बिमुख भा अधम न बेन समान॥228॥
भावार्थ
चन्द्रमा गुरुपत्नी गामी हुआ, राजा नहुष ब्राह्मणों की पालकी पर चढा और राजा वेन के समान नीच तो कोई नहीं होगा, जो लोक और वेद दोनों से विमुख हो गया॥228॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
सहसबाहु सुरनाथु त्रिसङ्कू। केहि न राजमद दीन्ह कलङ्कू॥
भरत कीन्ह यह उचित उपाऊ। रिपु रिन रञ्च न राखब काउ॥1॥
मूल
सहसबाहु सुरनाथु त्रिसङ्कू। केहि न राजमद दीन्ह कलङ्कू॥
भरत कीन्ह यह उचित उपाऊ। रिपु रिन रञ्च न राखब काउ॥1॥
भावार्थ
सहस्रबाहु, देवराज इन्द्र और त्रिशङ्कु आदि किसको राजमद ने कलङ्क नहीं दिया? भरत ने यह उपाय उचित ही किया है, क्योङ्कि शत्रु और ऋण को कभी जरा भी शेष नहीं रखना चाहिए॥1॥
एक कीन्हि नहिं भरत भलाई। निदरे रामु जानि असहाई॥
समुझि परिहि सोउ आजु बिसेषी। समर सरोष राम मुखु पेखी॥2॥
मूल
एक कीन्हि नहिं भरत भलाई। निदरे रामु जानि असहाई॥
समुझि परिहि सोउ आजु बिसेषी। समर सरोष राम मुखु पेखी॥2॥
भावार्थ
हाँ, भरत ने एक बात अच्छी नहीं की, जो रामजी (आप) को असहाय जानकर उनका निरादर किया! पर आज सङ्ग्राम में श्री रामजी (आप) का क्रोधपूर्ण मुख देखकर यह बात भी उनकी समझ में विशेष रूप से आ जाएगी (अर्थात् इस निरादर का फल भी वे अच्छी तरह पा जाएँगे)॥2॥
एतना कहत नीति रस भूला। रन रस बिटपु पुलक मिस फूला॥
प्रभु पद बन्दि सीस रज राखी। बोले सत्य सहज बलु भाषी॥3॥
मूल
एतना कहत नीति रस भूला। रन रस बिटपु पुलक मिस फूला॥
प्रभु पद बन्दि सीस रज राखी। बोले सत्य सहज बलु भाषी॥3॥
भावार्थ
इतना कहते ही लक्ष्मणजी नीतिरस भूल गए और युद्धरस रूपी वृक्ष पुलकावली के बहाने से फूल उठा (अर्थात् नीति की बात कहते-कहते उनके शरीर में वीर रस छा गया)। वे प्रभु श्री रामचन्द्रजी के चरणों की वन्दना करके, चरण रज को सिर पर रखकर सच्चा और स्वाभाविक बल कहते हुए बोले॥3॥
अनुचित नाथ न मानब मोरा। भरत हमहि उपचार न थोरा॥
कहँ लगि सहिअ रहिअ मनु मारें। नाथ साथ धनु हाथ हमारें॥4॥
मूल
अनुचित नाथ न मानब मोरा। भरत हमहि उपचार न थोरा॥
कहँ लगि सहिअ रहिअ मनु मारें। नाथ साथ धनु हाथ हमारें॥4॥
भावार्थ
हे नाथ! मेरा कहना अनुचित न मानिएगा। भरत ने हमें कम नहीं प्रचारा है (हमारे साथ कम छेडछाड नहीं की है)। आखिर कहाँ तक सहा जाए और मन मारे रहा जाए, जब स्वामी हमारे साथ हैं और धनुष हमारे हाथ में है!॥4॥