01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
मगबासी नर नारि सुनि धाम काम तजि धाइ।
देखि सरूप सनेह सब मुदित जनम फलु पाइ॥221॥
मूल
मगबासी नर नारि सुनि धाम काम तजि धाइ।
देखि सरूप सनेह सब मुदित जनम फलु पाइ॥221॥
भावार्थ
मार्ग में रहने वाले स्त्री-पुरुष यह सुनकर घर और काम-काज छोडकर दौड पडते हैं और उनके रूप (सौन्दर्य) और प्रेम को देखकर वे सब जन्म लेने का फल पाकर आनन्दित होते हैं॥221॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
कहहिं सप्रेम एक एक पाहीं। रामु लखनु सखि होहिं कि नाहीं॥
बय बपु बरन रूपु सोइ आली। सीलु सनेहु सरिस सम चाली॥1॥
मूल
कहहिं सप्रेम एक एक पाहीं। रामु लखनु सखि होहिं कि नाहीं॥
बय बपु बरन रूपु सोइ आली। सीलु सनेहु सरिस सम चाली॥1॥
भावार्थ
गाँवों की स्त्रियाँ एक-दूसरे से प्रेमपूर्वक कहती हैं- सखी! ये राम-लक्ष्मण हैं कि नहीं? हे सखी! इनकी अवस्था, शरीर और रङ्ग-रूप तो वही है। शील, स्नेह उन्हीं के सदृश है और चाल भी उन्हीं के समान है॥1॥
बेषु न सो सखि सीय न सङ्गा। आगें अनी चली चतुरङ्गा॥
नहिं प्रसन्न मुख मानस खेदा। सखि सन्देहु होइ एहिं भेदा॥2॥
मूल
बेषु न सो सखि सीय न सङ्गा। आगें अनी चली चतुरङ्गा॥
नहिं प्रसन्न मुख मानस खेदा। सखि सन्देहु होइ एहिं भेदा॥2॥
भावार्थ
परन्तु सखी! इनका न तो वह वेष (वल्कल वस्त्रधारी मुनिवेष) है, न सीताजी ही सङ्ग हैं और इनके आगे चतुरङ्गिणी सेना चली जा रही है। फिर इनके मुख प्रसन्न नहीं हैं, इनके मन में खेद है। हे सखी! इसी भेद के कारण सन्देह होता है॥2॥
तासु तरक तियगन मन मानी। कहहिं सकल तेहि सम न सयानी॥
तेहि सराहि बानी फुरि पूजी। बोली मधुर बचन तिय दूजी॥3॥
मूल
तासु तरक तियगन मन मानी। कहहिं सकल तेहि सम न सयानी॥
तेहि सराहि बानी फुरि पूजी। बोली मधुर बचन तिय दूजी॥3॥
भावार्थ
उसका तर्क (युक्ति) अन्य स्त्रियों के मन भाया। सब कहती हैं कि इसके समान सयानी (चतुर) कोई नहीं है। उसकी सराहना करके और ‘तेरी वाणी सत्य है’ इस प्रकार उसका सम्मान करके दूसरी स्त्री मीठे वचन बोली॥3॥
कहि सप्रेम बस कथाप्रसङ्गू। जेहि बिधि राम राज रस भङ्गू॥
भरतहि बहुरि सराहन लागी। सील सनेह सुभाय सुभागी॥4॥
मूल
कहि सप्रेम बस कथाप्रसङ्गू। जेहि बिधि राम राज रस भङ्गू॥
भरतहि बहुरि सराहन लागी। सील सनेह सुभाय सुभागी॥4॥
भावार्थ
श्री रामजी के राजतिलक का आनन्द जिस प्रकार से भङ्ग हुआ था, वह सब कथाप्रसङ्ग प्रेमपूर्वक कहकर फिर वह भाग्यवती स्त्री श्री भरतजी के शील, स्नेह और स्वभाव की सराहना करने लगी॥4॥