211

01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

अजिन बसन फल असन महि सयन डासि कुस पात।
बसि तरु तर नित सहत हिम आतप बरषा बात॥211॥

मूल

अजिन बसन फल असन महि सयन डासि कुस पात।
बसि तरु तर नित सहत हिम आतप बरषा बात॥211॥

भावार्थ

वे वल्कल वस्त्र पहनते हैं, फलों का भोजन करते हैं, पृथ्वी पर कुश और पत्ते बिछाकर सोते हैं और वृक्षों के नीचे निवास करके नित्य सर्दी, गर्मी, वर्षा और हवा सहते हैं॥ 211॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

एहि दुख दाहँ दहइ दिन छाती। भूख न बासर नीद न राती॥
एहि कुरोग कर औषधु नाहीं। सोधेउँ सकल बिस्व मन माहीं॥1॥

मूल

एहि दुख दाहँ दहइ दिन छाती। भूख न बासर नीद न राती॥
एहि कुरोग कर औषधु नाहीं। सोधेउँ सकल बिस्व मन माहीं॥1॥

भावार्थ

इसी दुःख की जलन से निरन्तर मेरी छाती जलती रहती है। मुझे न दिन में भूख लगती है, न रात को नीन्द आती है। मैन्ने मन ही मन समस्त विश्व को खोज डाला, पर इस कुरोग की औषध कहीं नहीं है॥1॥

मातु कुमत बढई अघ मूला। तेहिं हमार हित कीन्ह बँसूला॥
कलि कुकाठ कर कीन्ह कुजन्त्रू। गाडि अवधि पढि कठिन कुमन्त्रू॥2॥

मूल

मातु कुमत बढई अघ मूला। तेहिं हमार हित कीन्ह बँसूला॥
कलि कुकाठ कर कीन्ह कुजन्त्रू। गाडि अवधि पढि कठिन कुमन्त्रू॥2॥

भावार्थ

माता का कुमत (बुरा विचार) पापों का मूल बढई है। उसने हमारे हित का बसूला बनाया। उससे कलह रूपी कुकाठ का कुयन्त्र बनाया और चौदह वर्ष की अवधि रूपी कठिन कुमन्त्र पढकर उस यन्त्र को गाड दिया। (यहाँ माता का कुविचार बढई है, भरत को राज्य बसूला है, राम का वनवास कुयन्त्र है और चौदह वर्ष की अवधि कुमन्त्र है)॥2॥

मोहि लगि यहु कुठाटु तेहिं ठाटा। घालेसि सब जगु बारहबाटा॥
मिटइ कुजोगु राम फिरि आएँ। बसइ अवध नहिं आन उपाएँ॥3॥

मूल

मोहि लगि यहु कुठाटु तेहिं ठाटा। घालेसि सब जगु बारहबाटा॥
मिटइ कुजोगु राम फिरि आएँ। बसइ अवध नहिं आन उपाएँ॥3॥

भावार्थ

मेरे लिए उसने यह सारा कुठाट (बुरा साज) रचा और सारे जगत को बारहबाट (छिन्न-भिन्न) करके नष्ट कर डाला। यह कुयोग श्री रामचन्द्रजी के लौट आने पर ही मिट सकता है और तभी अयोध्या बस सकती है, दूसरे किसी उपाय से नहीं॥3॥

भरत बचन सुनि मुनि सुखु पाई। सबहिं कीन्हि बहु भाँति बडाई॥
तात करहु जनि सोचु बिसेषी। सब दुखु मिटिहि राम पग देखी॥4॥

मूल

भरत बचन सुनि मुनि सुखु पाई। सबहिं कीन्हि बहु भाँति बडाई॥
तात करहु जनि सोचु बिसेषी। सब दुखु मिटिहि राम पग देखी॥4॥

भावार्थ

भरतजी के वचन सुनकर मुनि ने सुख पाया और सभी ने उनकी बहुत प्रकार से बडाई की। (मुनि ने कहा-) हे तात! अधिक सोच मत करो। श्री रामचन्द्रजी के चरणों का दर्शन करते ही सारा दुःख मिट जाएगा॥4॥