169

01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

तात हृदयँ धीरजु धरहु करहु जो अवसर आजु।
उठे भरत गुर बचन सुनि करन कहेउ सबु साजु॥169॥

मूल

तात हृदयँ धीरजु धरहु करहु जो अवसर आजु।
उठे भरत गुर बचन सुनि करन कहेउ सबु साजु॥169॥

भावार्थ

(वशिष्ठजी ने कहा-) हे तात! हृदय में धीरज धरो और आज जिस कार्य के करने का अवसर है, उसे करो। गुरुजी के वचन सुनकर भरतजी उठे और उन्होन्ने सब तैयारी करने के लिए कहा॥169॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

नृपतनु बेद बिदित अन्हवावा। परम बिचित्र बिमानु बनावा॥
गाहि पदभरत मातु सब राखी। रहीं रानि दरसन अभिलाषी॥1॥

मूल

नृपतनु बेद बिदित अन्हवावा। परम बिचित्र बिमानु बनावा॥
गाहि पदभरत मातु सब राखी। रहीं रानि दरसन अभिलाषी॥1॥

भावार्थ

वेदों में बताई हुई विधि से राजा की देह को स्नान कराया गया और परम विचित्र विमान बनाया गया। भरतजी ने सब माताओं को चरण पकडकर रखा (अर्थात प्रार्थना करके उनको सती होने से रोक लिया)। वे रानियाँ भी (श्री राम के) दर्शन की अभिलाषा से रह गईं॥1॥

चन्दन अगर भार बहु आए। अमित अनेक सुगन्ध सुहाए॥
सरजु तीर रचि चिता बनाई। जनु सुरपुर सोपान सुहाई॥2॥

मूल

चन्दन अगर भार बहु आए। अमित अनेक सुगन्ध सुहाए॥
सरजु तीर रचि चिता बनाई। जनु सुरपुर सोपान सुहाई॥2॥

भावार्थ

चन्दन और अगर के तथा और भी अनेकों प्रकार के अपार (कपूर, गुग्गुल, केसर आदि) सुगन्ध द्रव्यों के बहुत से बोझ आए। सरयूजी के तट पर सुन्दर चिता रचकर बनाई गई, (जो ऐसी मालूम होती थी) मानो स्वर्ग की सुन्दर सीढी हो॥2॥

एहि बिधि दाह क्रिया सब कीन्ही। बिधिवत न्हाइ तिलाञ्जुलि दीन्ही॥
सोधि सुमृति सब बेद पुराना। कीन्ह भरत दसगात बिधाना॥3॥

मूल

एहि बिधि दाह क्रिया सब कीन्ही। बिधिवत न्हाइ तिलाञ्जुलि दीन्ही॥
सोधि सुमृति सब बेद पुराना। कीन्ह भरत दसगात बिधाना॥3॥

भावार्थ

इस प्रकार सब दाह क्रिया की गई और सबने विधिपूर्वक स्नान करके तिलाञ्जलि दी। फिर वेद, स्मृति और पुराण सबका मत निश्चय करके उसके अनुसार भरतजी ने पिता का दशगात्र विधान (दस दिनों के कृत्य) किया॥3॥

जहँ जस मुनिबर आयसु दीन्हा। तहँ तस सहस भाँति सबु कीन्हा॥
भए बिसुद्ध दिए सब दाना। धेनु बाजि गज बाहन नाना॥4॥

मूल

जहँ जस मुनिबर आयसु दीन्हा। तहँ तस सहस भाँति सबु कीन्हा॥
भए बिसुद्ध दिए सब दाना। धेनु बाजि गज बाहन नाना॥4॥

भावार्थ

मुनि श्रेष्ठ वशिष्ठजी ने जहाँ जैसी आज्ञा दी, वहाँ भरतजी ने सब वैसा ही हजारों प्रकार से किया। शुद्ध हो जाने पर (विधिपूर्वक) सब दान दिए। गायें तथा घोडे, हाथी आदि अनेक प्रकार की सवारियाँ,॥4॥