162

01 दोहा

राम बिरोधी हृदय तें प्रगट कीन्ह बिधि मोहि।
मो समान को पातकी बादि कहउँ कछु तोहि॥162॥

मूल

राम बिरोधी हृदय तें प्रगट कीन्ह बिधि मोहि।
मो समान को पातकी बादि कहउँ कछु तोहि॥162॥

भावार्थ

विधाता ने मुझे श्री रामजी से विरोध करने वाले (तेरे) हृदय से उत्पन्न किया (अथवा विधाता ने मुझे हृदय से राम का विरोधी जाहिर कर दिया।) मेरे बराबर पापी दूसरा कौन है? मैं व्यर्थ ही तुझे कुछ कहता हूँ॥162॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

सुनि सत्रुघुन मातु कुटिलाई। जरहिं गात रिस कछु न बसाई॥
तेहि अवसर कुबरी तहँ आई। बसन बिभूषन बिबिध बनाई॥1॥

मूल

सुनि सत्रुघुन मातु कुटिलाई। जरहिं गात रिस कछु न बसाई॥
तेहि अवसर कुबरी तहँ आई। बसन बिभूषन बिबिध बनाई॥1॥

भावार्थ

माता की कुटिलता सुनकर शत्रुघ्नजी के सब अङ्ग क्रोध से जल रहे हैं, पर कुछ वश नहीं चलता। उसी समय भाँति-भाँति के कपडों और गहनों से सजकर कुबरी (मन्थरा) वहाँ आई॥1॥

लखि रिस भरेउ लखन लघु भाई। बरत अनल घृत आहुति पाई॥
हुमगि लात तकि कूबर मारा। परि मुँह भर महि करत पुकारा॥2॥

मूल

लखि रिस भरेउ लखन लघु भाई। बरत अनल घृत आहुति पाई॥
हुमगि लात तकि कूबर मारा। परि मुँह भर महि करत पुकारा॥2॥

भावार्थ

उसे (सजी) देखकर लक्ष्मण के छोटे भाई शत्रुघ्नजी क्रोध में भर गए। मानो जलती हुई आग को घी की आहुति मिल गई हो। उन्होन्ने जोर से तककर कूबड पर एक लात जमा दी। वह चिल्लाती हुई मुँह के बल जमीन पर गिर पडी॥2॥

कूबर टूटेउ फूट कपारू। दलित दसन मुख रुधिर प्रचारू॥
आह दइअ मैं काह नसावा। करत नीक फलु अनइस पावा॥3॥

मूल

कूबर टूटेउ फूट कपारू। दलित दसन मुख रुधिर प्रचारू॥
आह दइअ मैं काह नसावा। करत नीक फलु अनइस पावा॥3॥

भावार्थ

उसका कूबड टूट गया, कपाल फूट गया, दाँत टूट गए और मुँह से खून बहने लगा। (वह कराहती हुई बोली-) हाय दैव! मैन्ने क्या बिगाडा? जो भला करते बुरा फल पाया॥3॥

सुनि रिपुहन लखि नख सिख खोटी। लगे घसीटन धरि धरि झोण्टी॥
भरत दयानिधि दीन्हि छुडाई। कौसल्या पहिं गे दोउ भाई॥4॥

मूल

सुनि रिपुहन लखि नख सिख खोटी। लगे घसीटन धरि धरि झोण्टी॥
भरत दयानिधि दीन्हि छुडाई। कौसल्या पहिं गे दोउ भाई॥4॥

भावार्थ

उसकी यह बात सुनकर और उसे नख से शिखा तक दुष्ट जानकर शत्रुघ्नजी झोण्टा पकड-पकडकर उसे घसीटने लगे। तब दयानिधि भरतजी ने उसको छुडा दिया और दोनों भाई (तुरन्त) कौसल्याजी के पास गए॥4॥