147

01 दोहा

सचिव आगमनु सुनत सबु बिकल भयउ रनिवासु।
भवनु भयङ्करु लाग तेहि मानहुँ प्रेत निवासु॥147॥

मूल

सचिव आगमनु सुनत सबु बिकल भयउ रनिवासु।
भवनु भयङ्करु लाग तेहि मानहुँ प्रेत निवासु॥147॥

भावार्थ

मन्त्री का (अकेले ही) आना सुनकर सारा रनिवास व्याकुल हो गया। राजमहल उनको ऐसा भयानक लगा मानो प्रेतों का निवास स्थान (श्मशान) हो॥147॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

अति आरति सब पूँछहिं रानी। उतरु न आव बिकल भइ बानी॥
सुनइ न श्रवन नयन नहिं सूझा। कहहु कहाँ नृपु तेहि तेहि बूझा॥1॥

मूल

अति आरति सब पूँछहिं रानी। उतरु न आव बिकल भइ बानी॥
सुनइ न श्रवन नयन नहिं सूझा। कहहु कहाँ नृपु तेहि तेहि बूझा॥1॥

भावार्थ

अत्यन्त आर्त होकर सब रानियाँ पूछती हैं, पर सुमन्त्र को कुछ उत्तर नहीं आता, उनकी वाणी विकल हो गई (रुक गई) है। न कानों से सुनाई पडता है और न आँखों से कुछ सूझता है। वे जो भी सामने आता है उस-उससे पूछते हैं कहो, राजा कहाँ हैं ?॥1॥

दासिन्ह दीख सचिव बिकलाई। कौसल्या गृहँ गईं लवाई॥
जाइ सुमन्त्र दीख कस राजा। अमिअ रहित जनु चन्दु बिराजा॥2॥

मूल

दासिन्ह दीख सचिव बिकलाई। कौसल्या गृहँ गईं लवाई॥
जाइ सुमन्त्र दीख कस राजा। अमिअ रहित जनु चन्दु बिराजा॥2॥

भावार्थ

दासियाँ मन्त्री को व्याकुल देखकर उन्हें कौसल्याजी के महल में लिवा गईं। सुमन्त्र ने जाकर वहाँ राजा को कैसा (बैठे) देखा मानो बिना अमृत का चन्द्रमा हो॥2॥

आसन सयन बिभूषन हीना। परेउ भूमितल निपट मलीना॥
लेइ उसासु सोच एहि भाँती। सुरपुर तें जनु खँसेउ जजाती॥3॥

मूल

आसन सयन बिभूषन हीना। परेउ भूमितल निपट मलीना॥
लेइ उसासु सोच एहि भाँती। सुरपुर तें जनु खँसेउ जजाती॥3॥

भावार्थ

राजा आसन, शय्या और आभूषणों से रहित बिलकुल मलिन (उदास) पृथ्वी पर पडे हुए हैं। वे लम्बी साँसें लेकर इस प्रकार सोच करते हैं, मानो राजा ययाति स्वर्ग से गिरकर सोच कर रहे हों॥3॥

लेत सोच भरि छिनु छिनु छाती। जनु जरि पङ्ख परेउ सम्पाती॥
राम राम कह राम सनेही। पुनि कह राम लखन बैदेही॥4॥

मूल

लेत सोच भरि छिनु छिनु छाती। जनु जरि पङ्ख परेउ सम्पाती॥
राम राम कह राम सनेही। पुनि कह राम लखन बैदेही॥4॥

भावार्थ

राजा क्षण-क्षण में सोच से छाती भर लेते हैं। ऐसी विकल दशा है मानो (गीध राज जटायु का भाई) सम्पाती पङ्खों के जल जाने पर गिर पडा हो। राजा (बार-बार) ‘राम, राम’ ‘हा स्नेही (प्यारे) राम!’ कहते हैं, फिर ‘हा राम, हा लक्ष्मण, हा जानकी’ ऐसा कहने लगते हैं॥4॥