146

01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

हृदउ न बिदरेउ पङ्क जिमि बिछुरत प्रीतमु नीरु।
जानत हौं मोहि दीन्ह बिधि यहु जातना सरीरु॥146॥

मूल

हृदउ न बिदरेउ पङ्क जिमि बिछुरत प्रीतमु नीरु।
जानत हौं मोहि दीन्ह बिधि यहु जातना सरीरु॥146॥

भावार्थ

प्रियतम (श्री रामजी) रूपी जल के बिछुडते ही मेरा हृदय कीचड की तरह फट नहीं गया, इससे मैं जानता हूँ कि विधाता ने मुझे यह ‘यातना शरीर’ ही दिया है (जो पापी जीवों को नरक भोगने के लिए मिलता है)॥146॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

एहि बिधि करत पन्थ पछितावा। तमसा तीर तुरत रथु आवा॥
बिदा किए करि बिनय निषादा। फिरे पायँ परि बिकल बिषादा॥1॥

मूल

एहि बिधि करत पन्थ पछितावा। तमसा तीर तुरत रथु आवा॥
बिदा किए करि बिनय निषादा। फिरे पायँ परि बिकल बिषादा॥1॥

भावार्थ

सुमन्त्र इस प्रकार मार्ग में पछतावा कर रहे थे, इतने में ही रथ तुरन्त तमसा नदी के तट पर आ पहुँचा। मन्त्री ने विनय करके चारों निषादों को विदा किया। वे विषाद से व्याकुल होते हुए सुमन्त्र के पैरों पडकर लौटे॥1॥

पैठत नगर सचिव सकुचाई। जनु मारेसि गुर बाँभन गाई॥
बैठि बिटप तर दिवसु गवाँवा। साँझ समय तब अवसरु पावा॥2॥

मूल

पैठत नगर सचिव सकुचाई। जनु मारेसि गुर बाँभन गाई॥
बैठि बिटप तर दिवसु गवाँवा। साँझ समय तब अवसरु पावा॥2॥

भावार्थ

नगर में प्रवेश करते मन्त्री (ग्लानि के कारण) ऐसे सकुचाते हैं, मानो गुरु, ब्राह्मण या गौ को मारकर आए हों। सारा दिन एक पेड के नीचे बैठकर बिताया। जब सन्ध्या हुई तब मौका मिला॥2॥

अवध प्रबेसु कीन्ह अँधिआरें। पैठ भवन रथु राखि दुआरें॥
जिन्ह जिन्ह समाचार सुनि पाए। भूप द्वार रथु देखन आए॥3॥

मूल

अवध प्रबेसु कीन्ह अँधिआरें। पैठ भवन रथु राखि दुआरें॥
जिन्ह जिन्ह समाचार सुनि पाए। भूप द्वार रथु देखन आए॥3॥

भावार्थ

अँधेरा होने पर उन्होन्ने अयोध्या में प्रवेश किया और रथ को दरवाजे पर खडा करके वे (चुपके से) महल में घुसे। जिन-जिन लोगों ने यह समाचार सुना पाया, वे सभी रथ देखने को राजद्वार पर आए॥3॥

रथु पहिचानि बिकल लखि घोरे। गरहिं गात जिमि आतप ओरे॥
नगर नारि नर ब्याकुल कैसें। निघटत नीर मीनगन जैसें॥4॥

मूल

रथु पहिचानि बिकल लखि घोरे। गरहिं गात जिमि आतप ओरे॥
नगर नारि नर ब्याकुल कैसें। निघटत नीर मीनगन जैसें॥4॥

भावार्थ

रथ को पहचानकर और घोडों को व्याकुल देखकर उनके शरीर ऐसे गले जा रहे हैं (क्षीण हो रहे हैं) जैसे घाम में ओले! नगर के स्त्री-पुरुष कैसे व्याकुल हैं, जैसे जल के घटने पर मछलियाँ (व्याकुल होती हैं)॥4॥