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01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

सुमिरत रामहि तजहिं जन तृन सम बिषय बिलासु।
रामप्रिया जग जननि सिय कछु न आचरजु तासु॥140॥

मूल

सुमिरत रामहि तजहिं जन तृन सम बिषय बिलासु।
रामप्रिया जग जननि सिय कछु न आचरजु तासु॥140॥

भावार्थ

जिन श्री रामचन्द्रजी का स्मरण करने से ही भक्तजन तमाम भोग-विलास को तिनके के समान त्याग देते हैं, उन श्री रामचन्द्रजी की प्रिय पत्नी और जगत की माता सीताजी के लिए यह (भोग-विलास का त्याग) कुछ भी आश्चर्य नहीं है॥140॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

सीय लखन जेहि बिधि सुखु लहहीं। सोइ रघुनाथ करहिं सोइ कहहीं॥
कहहिं पुरातन कथा कहानी। सुनहिं लखनु सिय अति सुखु मानी॥1॥

मूल

सीय लखन जेहि बिधि सुखु लहहीं। सोइ रघुनाथ करहिं सोइ कहहीं॥
कहहिं पुरातन कथा कहानी। सुनहिं लखनु सिय अति सुखु मानी॥1॥

भावार्थ

सीताजी और लक्ष्मणजी को जिस प्रकार सुख मिले, श्री रघुनाथजी वही करते और वही कहते हैं। भगवान प्राचीन कथाएँ और कहानियाँ कहते हैं और लक्ष्मणजी तथा सीताजी अत्यन्त सुख मानकर सुनते हैं॥1॥

जब जब रामु अवध सुधि करहीं। तब तब बारि बिलोचन भरहीं॥
सुमिरि मातु पितु परिजन भाई। भरत सनेहु सीलु सेवकाई॥2॥

मूल

जब जब रामु अवध सुधि करहीं। तब तब बारि बिलोचन भरहीं॥
सुमिरि मातु पितु परिजन भाई। भरत सनेहु सीलु सेवकाई॥2॥

भावार्थ

जब-जब श्री रामचन्द्रजी अयोध्या की याद करते हैं, तब-तब उनके नेत्रों में जल भर आता है। माता-पिता, कुटुम्बियों और भाइयों तथा भरत के प्रेम, शील और सेवाभाव को याद करके-॥2॥

कृपासिन्धु प्रभु होहिं दुखारी। धीरजु धरहिं कुसमउ बिचारी॥
लखि सिय लखनु बिकल होइ जाहीं। जिमि पुरुषहि अनुसर परिछाहीं॥3॥

मूल

कृपासिन्धु प्रभु होहिं दुखारी। धीरजु धरहिं कुसमउ बिचारी॥
लखि सिय लखनु बिकल होइ जाहीं। जिमि पुरुषहि अनुसर परिछाहीं॥3॥

भावार्थ

कृपा के समुद्र प्रभु श्री रामचन्द्रजी दुःखी हो जाते हैं, किन्तु फिर कुसमय समझकर धीरज धारण कर लेते हैं। श्री रामचन्द्रजी को दुःखी देखकर सीताजी और लक्ष्मणजी भी व्याकुल हो जाते हैं, जैसे किसी मनुष्य की परछाहीं उस मनुष्य के समान ही चेष्टा करती है॥3॥

प्रिया बन्धु गति लखि रघुनन्दनु। धीर कृपाल भगत उर चन्दनु॥
लगे कहन कछु कथा पुनीता। सुनि सुखु लहहिं लखनु अरु सीता॥4॥

मूल

प्रिया बन्धु गति लखि रघुनन्दनु। धीर कृपाल भगत उर चन्दनु॥
लगे कहन कछु कथा पुनीता। सुनि सुखु लहहिं लखनु अरु सीता॥4॥

भावार्थ

तब धीर, कृपालु और भक्तों के हृदयों को शीतल करने के लिए चन्दन रूप रघुकुल को आनन्दित करने वाले श्री रामचन्द्रजी प्यारी पत्नी और भाई लक्ष्मण की दशा देखकर कुछ पवित्र कथाएँ कहने लगते हैं, जिन्हें सुनकर लक्ष्मणजी और सीताजी सुख प्राप्त करते हैं॥4॥