01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
छिनु छिनु लखि सिय राम पद जानि आपु पर नेहु।
करत न सपनेहुँ लखनु चितु बन्धु मातु पितु गेहु॥139॥
मूल
छिनु छिनु लखि सिय राम पद जानि आपु पर नेहु।
करत न सपनेहुँ लखनु चितु बन्धु मातु पितु गेहु॥139॥
भावार्थ
क्षण-क्षण पर श्री सीता-रामजी के चरणों को देखकर और अपने ऊपर उनका स्नेह जानकर लक्ष्मणजी स्वप्न में भी भाइयों, माता-पिता और घर की याद नहीं करते॥139॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
राम सङ्ग सिय रहति सुखारी। पुर परिजन गृह सुरति बिसारी॥
छिनु छिनु पिय बिधु बदनु निहारी। प्रमुदित मनहुँ चकोर कुमारी॥1॥
मूल
राम सङ्ग सिय रहति सुखारी। पुर परिजन गृह सुरति बिसारी॥
छिनु छिनु पिय बिधु बदनु निहारी। प्रमुदित मनहुँ चकोर कुमारी॥1॥
भावार्थ
श्री रामचन्द्रजी के साथ सीताजी अयोध्यापुरी, कुटुम्ब के लोग और घर की याद भूलकर बहुत ही सुखी रहती हैं। क्षण-क्षण पर पति श्री रामचन्द्रजी के चन्द्रमा के समान मुख को देखकर वे वैसे ही परम प्रसन्न रहती हैं, जैसे चकोर कुमारी (चकोरी) चन्द्रमा को देखकर !॥1॥
नाह नेहु नित बढत बिलोकी। हरषित रहति दिवस जिमि कोकी॥
सिय मनु राम चरन अनुरागा। अवध सहस सम बनु प्रिय लागा॥2॥
मूल
नाह नेहु नित बढत बिलोकी। हरषित रहति दिवस जिमि कोकी॥
सिय मनु राम चरन अनुरागा। अवध सहस सम बनु प्रिय लागा॥2॥
भावार्थ
स्वामी का प्रेम अपने प्रति नित्य बढता हुआ देखकर सीताजी ऐसी हर्षित रहती हैं, जैसे दिन में चकवी! सीताजी का मन श्री रामचन्द्रजी के चरणों में अनुरक्त है, इससे उनको वन हजारों अवध के समान प्रिय लगता है॥2॥
परनकुटी प्रिय प्रियतम सङ्गा। प्रिय परिवारु कुरङ्ग बिहङ्गा॥
सासु ससुर सम मुनितिय मुनिबर। असनु अमिअ सम कन्द मूल फर॥3॥
मूल
परनकुटी प्रिय प्रियतम सङ्गा। प्रिय परिवारु कुरङ्ग बिहङ्गा॥
सासु ससुर सम मुनितिय मुनिबर। असनु अमिअ सम कन्द मूल फर॥3॥
भावार्थ
प्रियतम (श्री रामचन्द्रजी) के साथ पर्णकुटी प्यारी लगती है। मृग और पक्षी प्यारे कुटुम्बियों के समान लगते हैं। मुनियों की स्त्रियाँ सास के समान, श्रेष्ठ मुनि ससुर के समान और कन्द-मूल-फलों का आहार उनको अमृत के समान लगता है॥3॥
नाथ साथ साँथरी सुहाई। मयन सयन सय सम सुखदाई॥
लोकप होहिं बिलोकत जासू। तेहि कि मोहि सक बिषय बिलासू॥4॥
मूल
नाथ साथ साँथरी सुहाई। मयन सयन सय सम सुखदाई॥
लोकप होहिं बिलोकत जासू। तेहि कि मोहि सक बिषय बिलासू॥4॥
भावार्थ
स्वामी के साथ सुन्दर साथरी (कुश और पत्तों की सेज) सैकडों कामदेव की सेजों के समान सुख देने वाली है। जिनके (कृपापूर्वक) देखने मात्र से जीव लोकपाल हो जाते हैं, उनको कहीं भोग-विलास मोहित कर सकते हैं!॥4॥