137

01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

नीलकण्ठ कलकण्ठ सुक चातक चक्क चकोर।
भाँति भाँति बोलहिं बिहग श्रवन सुखद चित चोर॥137॥

मूल

नीलकण्ठ कलकण्ठ सुक चातक चक्क चकोर।
भाँति भाँति बोलहिं बिहग श्रवन सुखद चित चोर॥137॥

भावार्थ

नीलकण्ठ, कोयल, तोते, पपीहे, चकवे और चकोर आदि पक्षी कानों को सुख देने वाली और चित्त को चुराने वाली तरह-तरह की बोलियाँ बोलते हैं॥137॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

करि केहरि कपि कोल कुरङ्गा। बिगतबैर बिचरहिं सब सङ्गा॥
फिरत अहेर राम छबि देखी। होहिं मुदित मृग बृन्द बिसेषी॥1॥

मूल

करि केहरि कपि कोल कुरङ्गा। बिगतबैर बिचरहिं सब सङ्गा॥
फिरत अहेर राम छबि देखी। होहिं मुदित मृग बृन्द बिसेषी॥1॥

भावार्थ

हाथी, सिंह, बन्दर, सूअर और हिरन, ये सब वैर छोडकर साथ-साथ विचरते हैं। शिकार के लिए फिरते हुए श्री रामचन्द्रजी की छबि को देखकर पशुओं के समूह विशेष आनन्दित होते हैं॥1॥

बिबुध बिपिन जहँ लगि जग माहीं। देखि रामबनु सकल सिहाहीं॥
सुरसरि सरसइ दिनकर कन्या। मेकलसुता गोदावरि धन्या॥2॥

मूल

बिबुध बिपिन जहँ लगि जग माहीं। देखि रामबनु सकल सिहाहीं॥
सुरसरि सरसइ दिनकर कन्या। मेकलसुता गोदावरि धन्या॥2॥

भावार्थ

जगत में जहाँ तक (जितने) देवताओं के वन हैं, सब श्री रामजी के वन को देखकर सिहाते हैं, गङ्गा, सरस्वती, सूर्यकुमारी यमुना, नर्मदा, गोदावरी आदि धन्य (पुण्यमयी) नदियाँ,॥2॥

सब सर सिन्धु नदीं नद नाना। मन्दाकिनि कर करहिं बखाना॥
उदय अस्त गिरि अरु कैलासू। मन्दर मेरु सकल सुरबासू॥3॥

मूल

सब सर सिन्धु नदीं नद नाना। मन्दाकिनि कर करहिं बखाना॥
उदय अस्त गिरि अरु कैलासू। मन्दर मेरु सकल सुरबासू॥3॥

भावार्थ

सारे तालाब, समुद्र, नदी और अनेकों नद सब मन्दाकिनी की बडाई करते हैं। उदयाचल, अस्ताचल, कैलास, मन्दराचल और सुमेरु आदि सब, जो देवताओं के रहने के स्थान हैं,॥3॥

सैल हिमाचल आदिक जेते। चित्रकूट जसु गावहिं तेते॥
बिन्धि मुदित मन सुखु न समाई। श्रम बिनु बिपुल बडाई पाई॥4॥

मूल

सैल हिमाचल आदिक जेते। चित्रकूट जसु गावहिं तेते॥
बिन्धि मुदित मन सुखु न समाई। श्रम बिनु बिपुल बडाई पाई॥4॥

भावार्थ

और हिमालय आदि जितने पर्वत हैं, सभी चित्रकूट का यश गाते हैं। विन्ध्याचल बडा आनन्दित है, उसके मन में सुख समाता नहीं, क्योङ्कि उसने बिना परिश्रम ही बहुत बडी बडाई पा ली है॥4॥