01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
जथाजोग सनमानि प्रभु बिदा किए मुनिबृन्द।
करहिं जोग जप जाग तप निज आश्रमन्हि सुछन्द॥134॥
मूल
जथाजोग सनमानि प्रभु बिदा किए मुनिबृन्द।
करहिं जोग जप जाग तप निज आश्रमन्हि सुछन्द॥134॥
भावार्थ
प्रभु श्री रामचन्द्रजी ने यथायोग्य सम्मान करके मुनि मण्डली को विदा किया। (श्री रामचन्द्रजी के आ जाने से) वे सब अपने-अपने आश्रमों में अब स्वतन्त्रता के साथ योग, जप, यज्ञ और तप करने लगे॥134॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
यह सुधि कोल किरातन्ह पाई। हरषे जनु नव निधि घर आई॥
कन्द मूल फल भरि भरि दोना। चले रङ्क जनु लूटन सोना॥1॥
मूल
यह सुधि कोल किरातन्ह पाई। हरषे जनु नव निधि घर आई॥
कन्द मूल फल भरि भरि दोना। चले रङ्क जनु लूटन सोना॥1॥
भावार्थ
यह (श्री रामजी के आगमन का) समाचार जब कोल-भीलों ने पाया, तो वे ऐसे हर्षित हुए मानो नवों निधियाँ उनके घर ही पर आ गई हों। वे दोनों में कन्द, मूल, फल भर-भरकर चले, मानो दरिद्र सोना लूटने चले हों॥1॥
तिन्ह महँ जिन्ह देखे दोउ भ्राता। अपर तिन्हहि पूँछहिं मगु जाता॥
कहत सुनत रघुबीर निकाई। आइ सबन्हि देखे रघुराई॥2॥
मूल
तिन्ह महँ जिन्ह देखे दोउ भ्राता। अपर तिन्हहि पूँछहिं मगु जाता॥
कहत सुनत रघुबीर निकाई। आइ सबन्हि देखे रघुराई॥2॥
भावार्थ
उनमें से जो दोनों भाइयों को (पहले) देख चुके थे, उनसे दूसरे लोग रास्ते में जाते हुए पूछते हैं। इस प्रकार श्री रामचन्द्रजी की सुन्दरता कहते-सुनते सबने आकर श्री रघुनाथजी के दर्शन किए॥2॥
करहिं जोहारु भेण्ट धरि आगे। प्रभुहि बिलोकहिं अति अनुरागे॥
चित्र लिखे जनु जहँ तहँ ठाढे। पुलक सरीर नयन जल बाढे॥3॥
मूल
करहिं जोहारु भेण्ट धरि आगे। प्रभुहि बिलोकहिं अति अनुरागे॥
चित्र लिखे जनु जहँ तहँ ठाढे। पुलक सरीर नयन जल बाढे॥3॥
भावार्थ
भेण्ट आगे रखकर वे लोग जोहार करते हैं और अत्यन्त अनुराग के साथ प्रभु को देखते हैं। वे मुग्ध हुए जहाँ के तहाँ मानो चित्र लिखे से खडे हैं। उनके शरीर पुलकित हैं और नेत्रों में प्रेमाश्रुओं के जल की बाढ आ रही है॥3॥
राम सनेह मगन सब जाने। कहि प्रिय बचन सकल सनमाने॥
प्रभुहि जोहारि बहोरि बहोरी। बचन बिनीत कहहिङ्कर जोरी॥4॥
मूल
राम सनेह मगन सब जाने। कहि प्रिय बचन सकल सनमाने॥
प्रभुहि जोहारि बहोरि बहोरी। बचन बिनीत कहहिङ्कर जोरी॥4॥
भावार्थ
श्री रामजी ने उन सबको प्रेम में मग्न जाना और प्रिय वचन कहकर सबका सम्मान किया। वे बार-बार प्रभु श्री रामचन्द्रजी को जोहार करते हुए हाथ जोडकर विनीत वचन कहते हैं-॥4॥