130

01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

स्वामि सखा पितु मातु गुर जिन्ह के सब तुम्ह तात।
मन मन्दिर तिन्ह कें बसहु सीय सहित दोउ भ्रात॥130॥

मूल

स्वामि सखा पितु मातु गुर जिन्ह के सब तुम्ह तात।
मन मन्दिर तिन्ह कें बसहु सीय सहित दोउ भ्रात॥130॥

भावार्थ

हे तात! जिनके स्वामी, सखा, पिता, माता और गुरु सब कुछ आप ही हैं, उनके मन रूपी मन्दिर में सीता सहित आप दोनों भाई निवास कीजिए॥130॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

अवगुन तजि सब के गुन गहहीं। बिप्र धेनु हित सङ्कट सहहीं॥
नीति निपुन जिन्ह कइ जग लीका। घर तुम्हार तिन्ह कर मनु नीका॥1॥

मूल

अवगुन तजि सब के गुन गहहीं। बिप्र धेनु हित सङ्कट सहहीं॥
नीति निपुन जिन्ह कइ जग लीका। घर तुम्हार तिन्ह कर मनु नीका॥1॥

भावार्थ

जो अवगुणों को छोडकर सबके गुणों को ग्रहण करते हैं, ब्राह्मण और गो के लिए सङ्कट सहते हैं, नीति-निपुणता में जिनकी जगत में मर्यादा है, उनका सुन्दर मन आपका घर है॥1॥

गुन तुम्हार समुझइ निज दोसा। जेहि सब भाँति तुम्हार भरोसा॥
राम भगत प्रिय लागहिं जेही। तेहि उर बसहु सहित बैदेही॥2॥

मूल

गुन तुम्हार समुझइ निज दोसा। जेहि सब भाँति तुम्हार भरोसा॥
राम भगत प्रिय लागहिं जेही। तेहि उर बसहु सहित बैदेही॥2॥

भावार्थ

जो गुणों को आपका और दोषों को अपना समझता है, जिसे सब प्रकार से आपका ही भरोसा है और राम भक्त जिसे प्यारे लगते हैं, उसके हृदय में आप सीता सहित निवास कीजिए॥2॥

जाति पाँति धनु धरमु बडाई। प्रिय परिवार सदन सुखदाई॥
सब तजि तुम्हहि रहइ उर लाई। तेहि के हृदयँ रहहु रघुराई॥3॥

मूल

जाति पाँति धनु धरमु बडाई। प्रिय परिवार सदन सुखदाई॥
सब तजि तुम्हहि रहइ उर लाई। तेहि के हृदयँ रहहु रघुराई॥3॥

भावार्थ

जाति, पाँति, धन, धर्म, बडाई, प्यारा परिवार और सुख देने वाला घर, सबको छोडकर जो केवल आपको ही हृदय में धारण किए रहता है, हे रघुनाथजी! आप उसके हृदय में रहिए॥3॥

सरगु नरकु अपबरगु समाना। जहँ तहँ देख धरें धनु बाना॥
करम बचन मन राउर चेरा। राम करहु तेहि कें उर डेरा॥4॥

मूल

सरगु नरकु अपबरगु समाना। जहँ तहँ देख धरें धनु बाना॥
करम बचन मन राउर चेरा। राम करहु तेहि कें उर डेरा॥4॥

भावार्थ

स्वर्ग, नरक और मोक्ष जिसकी दृष्टि में समान हैं, क्योङ्कि वह जहाँ-तहाँ (सब जगह) केवल धनुष-बाण धारण किए आपको ही देखता है और जो कर्म से, वचन से और मन से आपका दास है, हे रामजी! आप उसके हृदय में डेरा कीजिए॥4॥