124

01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

सुचि सुन्दर आश्रमु निरखि हरषे राजिवनेन।
सुनि रघुबर आगमनु मुनि आगें आयउ लेन॥124॥

मूल

सुचि सुन्दर आश्रमु निरखि हरषे राजिवनेन।
सुनि रघुबर आगमनु मुनि आगें आयउ लेन॥124॥

भावार्थ

पवित्र और सुन्दर आश्रम को देखकर कमल नयन श्री रामचन्द्रजी हर्षित हुए। रघु श्रेष्ठ श्री रामजी का आगमन सुनकर मुनि वाल्मीकिजी उन्हें लेने के लिए आगे आए॥124॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

मुनि कहुँ राम दण्डवत कीन्हा। आसिरबादु बिप्रबर दीन्हा॥
देखि राम छबि नयन जुडाने। करि सनमानु आश्रमहिं आने॥1॥

मूल

मुनि कहुँ राम दण्डवत कीन्हा। आसिरबादु बिप्रबर दीन्हा॥
देखि राम छबि नयन जुडाने। करि सनमानु आश्रमहिं आने॥1॥

भावार्थ

श्री रामचन्द्रजी ने मुनि को दण्डवत किया। विप्र श्रेष्ठ मुनि ने उन्हें आशीर्वाद दिया। श्री रामचन्द्रजी की छबि देखकर मुनि के नेत्र शीतल हो गए। सम्मानपूर्वक मुनि उन्हें आश्रम में ले आए॥1॥

मुनिबर अतिथि प्रानप्रिय पाए। कन्द मूल फल मधुर मँगाए॥
सिय सौमित्रि राम फल खाए। तब मुनि आश्रम दिए सुहाए॥2॥

मूल

मुनिबर अतिथि प्रानप्रिय पाए। कन्द मूल फल मधुर मँगाए॥
सिय सौमित्रि राम फल खाए। तब मुनि आश्रम दिए सुहाए॥2॥

भावार्थ

श्रेष्ठ मुनि वाल्मीकिजी ने प्राणप्रिय अतिथियों को पाकर उनके लिए मधुर कन्द, मूल और फल मँगवाए। श्री सीताजी, लक्ष्मणजी और रामचन्द्रजी ने फलों को खाया। तब मुनि ने उनको (विश्राम करने के लिए) सुन्दर स्थान बतला दिए॥2॥

बालमीकि मन आनँदु भारी। मङ्गल मूरति नयन निहारी॥
तब कर कमल जोरि रघुराई। बोले बचन श्रवन सुखदाई॥3॥

मूल

बालमीकि मन आनँदु भारी। मङ्गल मूरति नयन निहारी॥
तब कर कमल जोरि रघुराई। बोले बचन श्रवन सुखदाई॥3॥

भावार्थ

(मुनि श्री रामजी के पास बैठे हैं और उनकी) मङ्गल मूर्ति को नेत्रों से देखकर वाल्मीकिजी के मन में बडा भारी आनन्द हो रहा है। तब श्री रघुनाथजी कमलसदृश हाथों को जोडकर, कानों को सुख देने वाले मधुर वचन बोले-॥3॥

तुम्ह त्रिकाल दरसी मुनिनाथा। बिस्व बदर जिमि तुम्हरें हाथा ॥
अस कहि प्रभु सब कथा बखानी। जेहि जेहि भाँति दीन्ह बनु रानी॥4॥

मूल

तुम्ह त्रिकाल दरसी मुनिनाथा। बिस्व बदर जिमि तुम्हरें हाथा ॥
अस कहि प्रभु सब कथा बखानी। जेहि जेहि भाँति दीन्ह बनु रानी॥4॥

भावार्थ

हे मुनिनाथ! आप त्रिकालदर्शी हैं। सम्पूर्ण विश्व आपके लिए हथेली पर रखे हुए बेर के समान है। प्रभु श्री रामचन्द्रजी ने ऐसा कहकर फिर जिस-जिस प्रकार से रानी कैकेयी ने वनवास दिया, वह सब कथा विस्तार से सुनाई॥4॥