01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
बिदा किए बटु बिनय करि फिरे पाइ मन काम।
उतरि नहाए जमुन जल जो सरीर सम स्याम॥109॥
मूल
बिदा किए बटु बिनय करि फिरे पाइ मन काम।
उतरि नहाए जमुन जल जो सरीर सम स्याम॥109॥
भावार्थ
तदनन्तर श्री रामजी ने विनती करके चारों ब्रह्मचारियों को विदा किया, वे मनचाही वस्तु (अनन्य भक्ति) पाकर लौटे। यमुनाजी के पार उतरकर सबने यमुनाजी के जल में स्नान किया, जो श्री रामचन्द्रजी के शरीर के समान ही श्याम रङ्ग का था॥109॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
सुनत तीरबासी नर नारी। धाए निज निज काज बिसारी॥
लखन राम सिय सुन्दरताई। देखि करहिं निज भाग्य बडाई॥1॥
मूल
सुनत तीरबासी नर नारी। धाए निज निज काज बिसारी॥
लखन राम सिय सुन्दरताई। देखि करहिं निज भाग्य बडाई॥1॥
भावार्थ
यमुनाजी के किनारे पर रहने वाले स्त्री-पुरुष (यह सुनकर कि निषाद के साथ दो परम सुन्दर सुकुमार नवयुवक और एक परम सुन्दरी स्त्री आ रही है) सब अपना-अपना काम भूलकर दौडे और लक्ष्मणजी, श्री रामजी और सीताजी का सौन्दर्य देखकर अपने भाग्य की बडाई करने लगे॥1॥
अति लालसा बसहिं मन माहीं। नाउँ गाउँ बूझत सकुचाहीं॥
जे तिन्ह महुँ बयबिरिध सयाने। तिन्ह करि जुगुति रामु पहिचाने॥2॥
मूल
अति लालसा बसहिं मन माहीं। नाउँ गाउँ बूझत सकुचाहीं॥
जे तिन्ह महुँ बयबिरिध सयाने। तिन्ह करि जुगुति रामु पहिचाने॥2॥
भावार्थ
उनके मन में (परिचय जानने की) बहुत सी लालसाएँ भरी हैं। पर वे नाम-गाँव पूछते सकुचाते हैं। उन लोगों में जो वयोवृद्ध और चतुर थे, उन्होन्ने युक्ति से श्री रामचन्द्रजी को पहचान लिया॥2॥
सकल कथा तिन्ह सबहि सुनाई। बनहि चले पितु आयसु पाई॥
सुनि सबिषाद सकल पछिताहीं। रानी रायँ कीन्ह भल नाहीं॥3॥
मूल
सकल कथा तिन्ह सबहि सुनाई। बनहि चले पितु आयसु पाई॥
सुनि सबिषाद सकल पछिताहीं। रानी रायँ कीन्ह भल नाहीं॥3॥
भावार्थ
उन्होन्ने सब कथा सब लोगों को सुनाई कि पिता की आज्ञा पाकर ये वन को चले हैं। यह सुनकर सब लोग दुःखित हो पछता रहे हैं कि रानी और राजा ने अच्छा नहीं किया॥3॥
तेहि अवसर एक तापसु आवा। तेजपुञ्ज लघुबयस सुहावा॥
कबि अलखित गति बेषु बिरागी। मन क्रम बचन राम अनुरागी॥4॥
मूल
तेहि अवसर एक तापसु आवा। तेजपुञ्ज लघुबयस सुहावा॥
कबि अलखित गति बेषु बिरागी। मन क्रम बचन राम अनुरागी॥4॥
भावार्थ
उसी अवसर पर वहाँ एक तपस्वी आया, जो तेज का पुञ्ज, छोटी अवस्था का और सुन्दर था। उसकी गति कवि नहीं जानते (अथवा वह कवि था जो अपना परिचय नहीं देना चाहता)। वह वैरागी के वेष में था और मन, वचन तथा कर्म से श्री रामचन्द्रजी का प्रेमी था॥4॥