01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
करम बचन मन छाडि छलु जब लगि जनु न तुम्हार।
तब लगि सुखु सपनेहुँ नहीं किएँ कोटि उपचार॥107॥
मूल
करम बचन मन छाडि छलु जब लगि जनु न तुम्हार।
तब लगि सुखु सपनेहुँ नहीं किएँ कोटि उपचार॥107॥
भावार्थ
जब तक कर्म, वचन और मन से छल छोडकर मनुष्य आपका दास नहीं हो जाता, तब तक करोडों उपाय करने से भी, स्वप्न में भी वह सुख नहीं पाता॥107॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
सुनि मुनि बचन रामु सकुचाने। भाव भगति आनन्द अघाने॥
तब रघुबर मुनि सुजसु सुहावा। कोटि भाँति कहि सबहि सुनावा॥1॥
मूल
सुनि मुनि बचन रामु सकुचाने। भाव भगति आनन्द अघाने॥
तब रघुबर मुनि सुजसु सुहावा। कोटि भाँति कहि सबहि सुनावा॥1॥
भावार्थ
मुनि के वचन सुनकर, उनकी भाव-भक्ति के कारण आनन्द से तृप्त हुए भगवान श्री रामचन्द्रजी (लीला की दृष्टि से) सकुचा गए। तब (अपने ऐश्वर्य को छिपाते हुए) श्री रामचन्द्रजी ने भरद्वाज मुनि का सुन्दर सुयश करोडों (अनेकों) प्रकार से कहकर सबको सुनाया॥1॥
सो बड सो सब गुन गन गेहू। जेहि मुनीस तुम्ह आदर देहू॥
मुनि रघुबीर परसपर नवहीं। बचन अगोचर सुखु अनुभवहीं॥2॥
मूल
सो बड सो सब गुन गन गेहू। जेहि मुनीस तुम्ह आदर देहू॥
मुनि रघुबीर परसपर नवहीं। बचन अगोचर सुखु अनुभवहीं॥2॥
भावार्थ
(उन्होन्ने कहा-) हे मुनीश्वर! जिसको आप आदर दें, वही बडा है और वही सब गुण समूहों का घर है। इस प्रकार श्री रामजी और मुनि भरद्वाजजी दोनों परस्पर विनम्र हो रहे हैं और अनिर्वचनीय सुख का अनुभव कर रहे हैं॥2॥
यह सुधि पाइ प्रयाग निवासी। बटु तापस मुनि सिद्ध उदासी॥
भरद्वाज आश्रम सब आए। देखन दसरथ सुअन सुहाए॥3॥
मूल
यह सुधि पाइ प्रयाग निवासी। बटु तापस मुनि सिद्ध उदासी॥
भरद्वाज आश्रम सब आए। देखन दसरथ सुअन सुहाए॥3॥
भावार्थ
यह (श्री राम, लक्ष्मण और सीताजी के आने की) खबर पाकर प्रयाग निवासी ब्रह्मचारी, तपस्वी, मुनि, सिद्ध और उदासी सब श्री दशरथजी के सुन्दर पुत्रों को देखने के लिए भरद्वाजजी के आश्रम पर आए॥3॥
राम प्रनाम कीन्ह सब काहू। मुदित भए लहि लोयन लाहू॥
देहिं असीस परम सुखु पाई। फिरे सराहत सुन्दरताई॥4॥
मूल
राम प्रनाम कीन्ह सब काहू। मुदित भए लहि लोयन लाहू॥
देहिं असीस परम सुखु पाई। फिरे सराहत सुन्दरताई॥4॥
भावार्थ
श्री रामचन्द्रजी ने सब किसी को प्रणाम किया। नेत्रों का लाभ पाकर सब आनन्दित हो गए और परम सुख पाकर आशीर्वाद देने लगे। श्री रामजी के सौन्दर्य की सराहना करते हुए वे लौटे॥4॥