01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
नृप अस कहेउ गोसाइँ जस कहइ करौं बलि सोइ।
करि बिनती पायन्ह परेउ दीन्ह बाल जिमि रोइ॥94॥
मूल
नृप अस कहेउ गोसाइँ जस कहइ करौं बलि सोइ।
करि बिनती पायन्ह परेउ दीन्ह बाल जिमि रोइ॥94॥
भावार्थ
महाराज ने ऐसा कहा था, अब प्रभु जैसा कहें, मैं वही करूँ, मैं आपकी बलिहारी हूँ। इस प्रकार से विनती करके वे श्री रामचन्द्रजी के चरणों में गिर पडे और बालक की तरह रो दिए॥94॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
तात कृपा करि कीजिअ सोई। जातें अवध अनाथ न होई॥
मन्त्रिहि राम उठाइ प्रबोधा। तात धरम मतु तुम्ह सबु सोधा॥1॥
मूल
तात कृपा करि कीजिअ सोई। जातें अवध अनाथ न होई॥
मन्त्रिहि राम उठाइ प्रबोधा। तात धरम मतु तुम्ह सबु सोधा॥1॥
भावार्थ
(और कहा -) हे तात ! कृपा करके वही कीजिए जिससे अयोध्या अनाथ न हो श्री रामजी ने मन्त्री को उठाकर धैर्य बँधाते हुए समझाया कि हे तात ! आपने तो धर्म के सभी सिद्धान्तों को छान डाला है॥1॥
सिबि दधीच हरिचन्द नरेसा। सहे धरम हित कोटि कलेसा॥
रन्तिदेव बलि भूप सुजाना। धरमु धरेउ सहि सङ्कट नाना॥2॥
मूल
सिबि दधीच हरिचन्द नरेसा। सहे धरम हित कोटि कलेसा॥
रन्तिदेव बलि भूप सुजाना। धरमु धरेउ सहि सङ्कट नाना॥2॥
भावार्थ
शिबि, दधीचि और राजा हरिश्चन्द्र ने धर्म के लिए करोडों (अनेकों) कष्ट सहे थे। बुद्धिमान राजा रन्तिदेव और बलि बहुत से सङ्कट सहकर भी धर्म को पकडे रहे (उन्होन्ने धर्म का परित्याग नहीं किया)॥2॥
धरमु न दूसर सत्य समाना। आगम निगम पुरान बखाना॥
मैं सोइ धरमु सुलभ करि पावा। तजें तिहूँ पुर अपजसु छावा॥3॥
मूल
धरमु न दूसर सत्य समाना। आगम निगम पुरान बखाना॥
मैं सोइ धरमु सुलभ करि पावा। तजें तिहूँ पुर अपजसु छावा॥3॥
भावार्थ
वेद, शास्त्र और पुराणों में कहा गया है कि सत्य के समान दूसरा धर्म नहीं है। मैन्ने उस धर्म को सहज ही पा लिया है। इस (सत्य रूपी धर्म) का त्याग करने से तीनों लोकों में अपयश छा जाएगा॥3॥
सम्भावित कहुँ अपजस लाहू। मरन कोटि सम दारुन दाहू॥
तुम्ह सन तात बहुत का कहउँ। दिएँ उतरु फिरि पातकु लहऊँ॥4॥
मूल
सम्भावित कहुँ अपजस लाहू। मरन कोटि सम दारुन दाहू॥
तुम्ह सन तात बहुत का कहउँ। दिएँ उतरु फिरि पातकु लहऊँ॥4॥
भावार्थ
प्रतिष्ठित पुरुष के लिए अपयश की प्राप्ति करोडों मृत्यु के समान भीषण सन्ताप देने वाली है। हे तात! मैं आप से अधिक क्या कहूँ! लौटकर उत्तर देने में भी पाप का भागी होता हूँ॥4॥