087

01 दोहा

सुद्ध सच्चिदानन्दमय कन्द भानुकुल केतु।
चरितकरत नर अनुहरत संसृति सागर सेतु॥87॥

मूल

सुद्ध सच्चिदानन्दमय कन्द भानुकुल केतु।
चरितकरत नर अनुहरत संसृति सागर सेतु॥87॥

भावार्थ

शुद्ध (प्रकृतिजन्य त्रिगुणों से रहित, मायातीत दिव्य मङ्गलविग्रह) सच्चिदानन्द-कन्द स्वरूप सूर्य कुल के ध्वजा रूप भगवान श्री रामचन्द्रजी मनुष्यों के सदृश ऐसे चरित्र करते हैं, जो संसार रूपी समुद्र के पार उतरने के लिए पुल के समान हैं॥87॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

यह सुधि गुहँ निषाद जब पाई। मुदित लिए प्रिय बन्धु बोलाई॥
लिए फल मूल भेण्ट भरि भारा। मिलन चलेउ हियँ हरषु अपारा॥1॥

मूल

यह सुधि गुहँ निषाद जब पाई। मुदित लिए प्रिय बन्धु बोलाई॥
लिए फल मूल भेण्ट भरि भारा। मिलन चलेउ हियँ हरषु अपारा॥1॥

भावार्थ

जब निषादराज गुह ने यह खबर पाई, तब आनन्दित होकर उसने अपने प्रियजनों और भाई-बन्धुओं को बुला लिया और भेण्ट देने के लिए फल, मूल (कन्द) लेकर और उन्हें भारों (बहँगियों) में भरकर मिलने के लिए चला। उसके हृदय में हर्ष का पार नहीं था॥1॥

करि दण्डवत भेण्ट धरि आगें। प्रभुहि बिलोकत अति अनुरागें॥
सहज सनेह बिबस रघुराई। पूँछी कुसल निकट बैठाई॥2॥

मूल

करि दण्डवत भेण्ट धरि आगें। प्रभुहि बिलोकत अति अनुरागें॥
सहज सनेह बिबस रघुराई। पूँछी कुसल निकट बैठाई॥2॥

भावार्थ

दण्डवत करके भेण्ट सामने रखकर वह अत्यन्त प्रेम से प्रभु को देखने लगा। श्री रघुनाथजी ने स्वाभाविक स्नेह के वश होकर उसे अपने पास बैठाकर कुशल पूछी॥2॥

नाथ कुसल पद पङ्कज देखें। भयउँ भागभाजन जन लेखें॥
देव धरनि धनु धामु तुम्हारा। मैं जनु नीचु सहित परिवारा॥3॥

मूल

नाथ कुसल पद पङ्कज देखें। भयउँ भागभाजन जन लेखें॥
देव धरनि धनु धामु तुम्हारा। मैं जनु नीचु सहित परिवारा॥3॥

भावार्थ

निषादराज ने उत्तर दिया- हे नाथ! आपके चरणकमल के दर्शन से ही कुशल है (आपके चरणारविन्दों के दर्शन कर) आज मैं भाग्यवान पुरुषों की गिनती में आ गया। हे देव! यह पृथ्वी, धन और घर सब आपका है। मैं तो परिवार सहित आपका नीच सेवक हूँ॥3॥

कृपा करिअ पुर धारिअ पाऊ। थापिय जनु सबु लोगु सिहाऊ॥
कहेहु सत्य सबु सखा सुजाना। मोहि दीन्ह पितु आयसु आना॥4॥

मूल

कृपा करिअ पुर धारिअ पाऊ। थापिय जनु सबु लोगु सिहाऊ॥
कहेहु सत्य सबु सखा सुजाना। मोहि दीन्ह पितु आयसु आना॥4॥

भावार्थ

अब कृपा करके पुर (श्रृङ्गवेरपुर) में पधारिए और इस दास की प्रतिष्ठा बढाइए, जिससे सब लोग मेरे भाग्य की बडाई करें। श्री रामचन्द्रजी ने कहा- हे सुजान सखा! तुमने जो कुछ कहा सब सत्य है, परन्तु पिताजी ने मुझको और ही आज्ञा दी है॥4॥