01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
राम दरस हित नेम ब्रत लगे करन नर नारि।
मनहुँ कोक कोकी कमल दीन बिहीन तमारि॥86॥
मूल
राम दरस हित नेम ब्रत लगे करन नर नारि।
मनहुँ कोक कोकी कमल दीन बिहीन तमारि॥86॥
भावार्थ
(सब) स्त्री-पुरुष श्री रामचन्द्रजी के दर्शन के लिए नियम और व्रत करने लगे और ऐसे दुःखी हो गए जैसे चकवा, चकवी और कमल सूर्य के बिना दीन हो जाते हैं॥86॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
सीता सचिव सहित दोउ भाई। सृङ्गबेरपुर पहुँचे जाई॥
उतरे राम देवसरि देखी। कीन्ह दण्डवत हरषु बिसेषी॥1॥
मूल
सीता सचिव सहित दोउ भाई। सृङ्गबेरपुर पहुँचे जाई॥
उतरे राम देवसरि देखी। कीन्ह दण्डवत हरषु बिसेषी॥1॥
भावार्थ
सीताजी और मन्त्री सहित दोनों भाई श्रृङ्गवेरपुर जा पहुँचे। वहाँ गङ्गाजी को देखकर श्री रामजी रथ से उतर पडे और बडे हर्ष के साथ उन्होन्ने दण्डवत की॥1॥
लखन सचिवँ सियँ किए प्रनामा। सबहि सहित सुखु पायउ रामा॥
गङ्ग सकल मुद मङ्गल मूला। सब सुख करनि हरनि सब सूला॥2॥
मूल
लखन सचिवँ सियँ किए प्रनामा। सबहि सहित सुखु पायउ रामा॥
गङ्ग सकल मुद मङ्गल मूला। सब सुख करनि हरनि सब सूला॥2॥
भावार्थ
लक्ष्मणजी, सुमन्त्र और सीताजी ने भी प्रणाम किया। सबके साथ श्री रामचन्द्रजी ने सुख पाया। गङ्गाजी समस्त आनन्द-मङ्गलों की मूल हैं। वे सब सुखों को करने वाली और सब पीडाओं को हरने वाली हैं॥2॥
कहि कहि कोटिक कथा प्रसङ्गा। रामु बिलोकहिं गङ्ग तरङ्गा॥
सचिवहि अनुजहि प्रियहि सुनाई। बिबुध नदी महिमा अधिकाई॥3॥
मूल
कहि कहि कोटिक कथा प्रसङ्गा। रामु बिलोकहिं गङ्ग तरङ्गा॥
सचिवहि अनुजहि प्रियहि सुनाई। बिबुध नदी महिमा अधिकाई॥3॥
भावार्थ
अनेक कथा प्रसङ्ग कहते हुए श्री रामजी गङ्गाजी की तरङ्गों को देख रहे हैं। उन्होन्ने मन्त्री को, छोटे भाई लक्ष्मणजी को और प्रिया सीताजी को देवनदी गङ्गाजी की बडी महिमा सुनाई॥3॥
मज्जनु कीन्ह पन्थ श्रम गयऊ। सुचि जलु पिअत मुदित मन भयऊ॥
सुमिरत जाहि मिटइ श्रम भारू। तेहि श्रम यह लौकिक ब्यवहारू॥4॥
मूल
मज्जनु कीन्ह पन्थ श्रम गयऊ। सुचि जलु पिअत मुदित मन भयऊ॥
सुमिरत जाहि मिटइ श्रम भारू। तेहि श्रम यह लौकिक ब्यवहारू॥4॥
भावार्थ
इसके बाद सबने स्नान किया, जिससे मार्ग का सारा श्रम (थकावट) दूर हो गया और पवित्र जल पीते ही मन प्रसन्न हो गया। जिनके स्मरण मात्र से (बार-बार जन्म ने और मरने का) महान श्रम मिट जाता है, उनको ‘श्रम’ होना- यह केवल लौकिक व्यवहार (नरलीला) है॥4॥