01 दोहा
बालक बृद्ध बिहाइ गृहँ लगे लोग सब साथ।
तमसा तीर निवासु किय प्रथम दिवस रघुनाथ॥84॥
मूल
बालक बृद्ध बिहाइ गृहँ लगे लोग सब साथ।
तमसा तीर निवासु किय प्रथम दिवस रघुनाथ॥84॥
भावार्थ
बच्चों और बूढों को घरों में छोडकर सब लोग साथ हो लिए। पहले दिन श्री रघुनाथजी ने तमसा नदी के तीर पर निवास किया॥84॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
रघुपति प्रजा प्रेमबस देखी। सदय हृदयँ दुखु भयउ बिसेषी॥
करुनामय रघुनाथ गोसाँई। बेगि पाइअहिं पीर पराई॥1॥
मूल
रघुपति प्रजा प्रेमबस देखी। सदय हृदयँ दुखु भयउ बिसेषी॥
करुनामय रघुनाथ गोसाँई। बेगि पाइअहिं पीर पराई॥1॥
भावार्थ
प्रजा को प्रेमवश देखकर श्री रघुनाथजी के दयालु हृदय में बडा दुःख हुआ। प्रभु श्री रघुनाथजी करुणामय हैं। पराई पीडा को वे तुरन्त पा जाते हैं (अर्थात दूसरे का दुःख देखकर वे तुरन्त स्वयं दुःखित हो जाते हैं)॥1॥
कहि सप्रेम मृदु बचन सुहाए। बहुबिधि राम लोग समुझाए॥
किए धरम उपदेस घनेरे। लोग प्रेम बस फिरहिं न फेरे॥2॥
मूल
कहि सप्रेम मृदु बचन सुहाए। बहुबिधि राम लोग समुझाए॥
किए धरम उपदेस घनेरे। लोग प्रेम बस फिरहिं न फेरे॥2॥
भावार्थ
प्रेमयुक्त कोमल और सुन्दर वचन कहकर श्री रामजी ने बहुत प्रकार से लोगों को समझाया और बहुतेरे धर्म सम्बन्धी उपदेश दिए, परन्तु प्रेमवश लोग लौटाए लौटते नहीं॥2॥
सीलु सनेहु छाडि नहिं जाई। असमञ्जस बस भे रघुराई॥
लोग सोग श्रम बस गए सोई। कछुक देवमायाँ मति मोई॥3॥
मूल
सीलु सनेहु छाडि नहिं जाई। असमञ्जस बस भे रघुराई॥
लोग सोग श्रम बस गए सोई। कछुक देवमायाँ मति मोई॥3॥
भावार्थ
शील और स्नेह छोडा नहीं जाता। श्री रघुनाथजी असमञ्जस के अधीन हो गए (दुविधा में पड गए)। शोक और परिश्रम (थकावट) के मारे लोग सो गए और कुछ देवताओं की माया से भी उनकी बुद्धि मोहित हो गई॥3॥
जबहिं जाम जुग जामिनि बीती। राम सचिव सन कहेउ सप्रीती॥
खोज मारि रथु हाँकहु ताता। आन उपायँ बनिहि नहिं बाता॥4॥
मूल
जबहिं जाम जुग जामिनि बीती। राम सचिव सन कहेउ सप्रीती॥
खोज मारि रथु हाँकहु ताता। आन उपायँ बनिहि नहिं बाता॥4॥
भावार्थ
जब दो पहर बीत गई, तब श्री रामचन्द्रजी ने प्रेमपूर्वक मन्त्री सुमन्त्र से कहा- हे तात! रथ के खोज मारकर (अर्थात पहियों के चिह्नों से दिशा का पता न चले इस प्रकार) रथ को हाँकिए। और किसी उपाय से बात नहीं बनेगी॥4॥