080

01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

मातु सकल मोरे बिरहँ जेहिं न होहिं दुख दीन।
सोइ उपाउ तुम्ह करेहु सब पुर जन परम प्रबीन॥80॥

मूल

मातु सकल मोरे बिरहँ जेहिं न होहिं दुख दीन।
सोइ उपाउ तुम्ह करेहु सब पुर जन परम प्रबीन॥80॥

भावार्थ

हे परम चतुर पुरवासी सज्जनों! आप लोग सब वही उपाए कीजिएगा, जिससे मेरी सब माताएँ मेरे विरह के दुःख से दुःखी न हों॥80॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

एहि बिधि राम सबहि समुझावा। गुर पद पदुम हरषि सिरु नावा॥
गनपति गौरि गिरीसु मनाई। चले असीस पाइ रघुराई॥1॥

मूल

एहि बिधि राम सबहि समुझावा। गुर पद पदुम हरषि सिरु नावा॥
गनपति गौरि गिरीसु मनाई। चले असीस पाइ रघुराई॥1॥

भावार्थ

इस प्रकार श्री रामजी ने सबको समझाया और हर्षित होकर गुरुजी के चरणकमलों में सिर नवाया। फिर गणेशजी, पार्वतीजी और कैलासपति महादेवजी को मनाकर तथा आशीर्वाद पाकर श्री रघुनाथजी चले॥1॥

राम चलत अति भयउ बिषादू। सुनि न जाइ पुर आरत नादू॥
कुसगुन लङ्क अवध अति सोकू। हरष बिषाद बिबस सुरलोकू॥2॥

मूल

राम चलत अति भयउ बिषादू। सुनि न जाइ पुर आरत नादू॥
कुसगुन लङ्क अवध अति सोकू। हरष बिषाद बिबस सुरलोकू॥2॥

भावार्थ

श्री रामजी के चलते ही बडा भारी विषाद हो गया। नगर का आर्तनाद (हाहाकर) सुना नहीं जाता। लङ्का में बुरे शकुन होने लगे, अयोध्या में अत्यन्त शोक छा गया और देवलोक में सब हर्ष और विषाद दोनों के वश में गए। (हर्ष इस बात का था कि अब राक्षसों का नाश होगा और विषाद अयोध्यावासियों के शोक के कारण था)॥2॥

गइ मुरुछा तब भूपति जागे। बोलि सुमन्त्रु कहन अस लागे॥
रामु चले बन प्रान न जाहीं। केहि सुख लागि रहत तन माहीं॥3॥

मूल

गइ मुरुछा तब भूपति जागे। बोलि सुमन्त्रु कहन अस लागे॥
रामु चले बन प्रान न जाहीं। केहि सुख लागि रहत तन माहीं॥3॥

भावार्थ

मूर्छा दूर हुई, तब राजा जागे और सुमन्त्र को बुलाकर ऐसा कहने लगे- श्री राम वन को चले गए, पर मेरे प्राण नहीं जा रहे हैं। न जाने ये किस सुख के लिए शरीर में टिक रहे हैं॥3॥

एहि तें कवन ब्यथा बलवाना। जो दुखु पाइ तजहिं तनु प्राना॥
पुनि धरि धीर कहइ नरनाहू। लै रथु सङ्ग सखा तुम्ह जाहू॥4॥

मूल

एहि तें कवन ब्यथा बलवाना। जो दुखु पाइ तजहिं तनु प्राना॥
पुनि धरि धीर कहइ नरनाहू। लै रथु सङ्ग सखा तुम्ह जाहू॥4॥

भावार्थ

इससे अधिक बलवती और कौन सी व्यथा होगी, जिस दुःख को पाकर प्राण शरीर को छोडेङ्गे। फिर धीरज धरकर राजा ने कहा- हे सखा! तुम रथ लेकर श्री राम के साथ जाओ॥4॥