059

01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

करि केहरि निसिचर चरहिं दुष्ट जन्तु बन भूरि।
बिष बाटिकाँ कि सोह सुत सुभग सजीवनि मूरि॥59॥

मूल

करि केहरि निसिचर चरहिं दुष्ट जन्तु बन भूरि।
बिष बाटिकाँ कि सोह सुत सुभग सजीवनि मूरि॥59॥

भावार्थ

हाथी, सिंह, राक्षस आदि अनेक दुष्ट जीव-जन्तु वन में विचरते रहते हैं। हे पुत्र! क्या विष की वाटिका में सुन्दर सञ्जीवनी बूटी शोभा पा सकती है?॥59॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

बन हित कोल किरात किसोरी। रचीं बिरञ्चि बिषय सुख भोरी॥
पाहन कृमि जिमि कठिन सुभाऊ। तिन्हहि कलेसु न कानन काऊ॥1॥

मूल

बन हित कोल किरात किसोरी। रचीं बिरञ्चि बिषय सुख भोरी॥
पाहन कृमि जिमि कठिन सुभाऊ। तिन्हहि कलेसु न कानन काऊ॥1॥

भावार्थ

वन के लिए तो ब्रह्माजी ने विषय सुख को न जानने वाली कोल और भीलों की लडकियों को रचा है, जिनका पत्थर के कीडे जैसा कठोर स्वभाव है। उन्हें वन में कभी क्लेश नहीं होता॥1॥

कै तापस तिय कानन जोगू। जिन्ह तप हेतु तजा सब भोगू॥
सिय बन बसिहि तात केहि भाँती। चित्रलिखित कपि देखि डेराती॥2॥

मूल

कै तापस तिय कानन जोगू। जिन्ह तप हेतु तजा सब भोगू॥
सिय बन बसिहि तात केहि भाँती। चित्रलिखित कपि देखि डेराती॥2॥

भावार्थ

अथवा तपस्वियों की स्त्रियाँ वन में रहने योग्य हैं, जिन्होन्ने तपस्या के लिए सब भोग तज दिए हैं। हे पुत्र! जो तसवीर के बन्दर को देखकर डर जाती हैं, वे सीता वन में किस तरह रह सकेङ्गी?॥2॥

सुरसर सुभग बनज बन चारी। डाबर जोगु कि हंसकुमारी॥
अस बिचारि जस आयसु होई। मैं सिख देउँ जानकिहि सोई॥3॥

मूल

सुरसर सुभग बनज बन चारी। डाबर जोगु कि हंसकुमारी॥
अस बिचारि जस आयसु होई। मैं सिख देउँ जानकिहि सोई॥3॥

भावार्थ

देवसरोवर के कमल वन में विचरण करने वाली हंसिनी क्या गडैयों (तलैयों) में रहने के योग्य है? ऐसा विचार कर जैसी तुम्हारी आज्ञा हो, मैं जानकी को वैसी ही शिक्षा दूँ॥3॥

जौं सिय भवन रहै कह अम्बा। मोहि कहँ होइ बहुत अवलम्बा॥
सुनि रघुबीर मातु प्रिय बानी। सील सनेह सुधाँ जनु सानी॥4॥

मूल

जौं सिय भवन रहै कह अम्बा। मोहि कहँ होइ बहुत अवलम्बा॥
सुनि रघुबीर मातु प्रिय बानी। सील सनेह सुधाँ जनु सानी॥4॥

भावार्थ

माता कहती हैं- यदि सीता घर में रहें तो मुझको बहुत सहारा हो जाए। श्री रामचन्द्रजी ने माता की प्रिय वाणी सुनकर, जो मानो शील और स्नेह रूपी अमृत से सनी हुई थी,॥4॥