039

01 दोहा

जाइ दीख रघुबंसमनि नरपति निपट कुसाजु।
सहमि परेउ लखि सिङ्घिनिहि मनहुँ बृद्ध गजराजु॥39॥

मूल

जाइ दीख रघुबंसमनि नरपति निपट कुसाजु।
सहमि परेउ लखि सिङ्घिनिहि मनहुँ बृद्ध गजराजु॥39॥

भावार्थ

रघुवंशमणि श्री रामचन्द्रजी ने जाकर देखा कि राजा अत्यन्त ही बुरी हालत में पडे हैं, मानो सिंहनी को देखकर कोई बूढा गजराज सहमकर गिर पडा हो॥39॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

सूखहिं अधर जरइ सबु अङ्गू। मनहुँ दीन मनिहीन भुअङ्गू॥
सरुष समीप दीखि कैकेई। मानहुँ मीचु घरीं गनि लेई॥1॥

मूल

सूखहिं अधर जरइ सबु अङ्गू। मनहुँ दीन मनिहीन भुअङ्गू॥
सरुष समीप दीखि कैकेई। मानहुँ मीचु घरीं गनि लेई॥1॥

भावार्थ

राजा के होठ सूख रहे हैं और सारा शरीर जल रहा है, मानो मणि के बिना साँप दुःखी हो रहा हो। पास ही क्रोध से भरी कैकेयी को देखा, मानो (साक्षात) मृत्यु ही बैठी (राजा के जीवन की अन्तिम) घडियाँ गिन रही हो॥1॥

करुनामय मृदु राम सुभाऊ। प्रथम दीख दुखु सुना न काऊ॥
तदपि धीर धरि समउ बिचारी। पूँछी मधुर बचन महतारी॥2॥

मूल

करुनामय मृदु राम सुभाऊ। प्रथम दीख दुखु सुना न काऊ॥
तदपि धीर धरि समउ बिचारी। पूँछी मधुर बचन महतारी॥2॥

भावार्थ

श्री रामचन्द्रजी का स्वभाव कोमल और करुणामय है। उन्होन्ने (अपने जीवन में) पहली बार यह दुःख देखा, इससे पहले कभी उन्होन्ने दुःख सुना भी न था। तो भी समय का विचार करके हृदय में धीरज धरकर उन्होन्ने मीठे वचनों से माता कैकेयी से पूछा-॥2॥

मोहि कहु मातु तात दुख कारन। करिअ जतन जेहिं होइ निवारन॥
सुनहु राम सबु कारनु एहू। राजहि तुम्ह पर बहुत सनेहू॥3॥

मूल

मोहि कहु मातु तात दुख कारन। करिअ जतन जेहिं होइ निवारन॥
सुनहु राम सबु कारनु एहू। राजहि तुम्ह पर बहुत सनेहू॥3॥

भावार्थ

हे माता! मुझे पिताजी के दुःख का कारण कहो, ताकि उसका निवारण हो (दुःख दूर हो) वह यत्न किया जाए। (कैकेयी ने कहा-) हे राम! सुनो, सारा कारण यही है कि राजा का तुम पर बहुत स्नेह है॥3॥

देन कहेन्हि मोहि दुइ बरदाना। मागेउँ जो कछु मोहि सोहाना॥
सो सुनि भयउ भूप उर सोचू। छाडि न सकहिं तुम्हार सँकोचू॥4॥

मूल

देन कहेन्हि मोहि दुइ बरदाना। मागेउँ जो कछु मोहि सोहाना॥
सो सुनि भयउ भूप उर सोचू। छाडि न सकहिं तुम्हार सँकोचू॥4॥

भावार्थ

इन्होन्ने मुझे दो वरदान देने को कहा था। मुझे जो कुछ अच्छा लगा, वही मैन्ने माँगा। उसे सुनकर राजा के हृदय में सोच हो गया, क्योङ्कि ये तुम्हारा सङ्कोच नहीं छोड सकते॥4॥