01 दोहा
परेउ राउ कहि कोटि बिधि काहे करसि निदानु।
कपट सयानि न कहति कछु जागति मनहुँ मसानु॥36॥
मूल
परेउ राउ कहि कोटि बिधि काहे करसि निदानु।
कपट सयानि न कहति कछु जागति मनहुँ मसानु॥36॥
भावार्थ
राजा करोडों प्रकार से (बहुत तरह से) समझाकर (और यह कहकर) कि तू क्यों सर्वनाश कर रही है, पृथ्वी पर गिर पडे। पर कपट करने में चतुर कैकेयी कुछ बोलती नहीं, मानो (मौन होकर) मसान जगा रही हो (श्मशान में बैठकर प्रेतमन्त्र सिद्ध कर रही हो)॥36॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
राम राम रट बिकल भुआलू। जनु बिनु पङ्ख बिहङ्ग बेहालू॥
हृदयँ मनाव भोरु जनि होई। रामहि जाइ कहै जनि कोई॥1॥
मूल
राम राम रट बिकल भुआलू। जनु बिनु पङ्ख बिहङ्ग बेहालू॥
हृदयँ मनाव भोरु जनि होई। रामहि जाइ कहै जनि कोई॥1॥
भावार्थ
राजा ‘राम-राम’ रट रहे हैं और ऐसे व्याकुल हैं, जैसे कोई पक्षी पङ्ख के बिना बेहाल हो। वे अपने हृदय में मनाते हैं कि सबेरा न हो और कोई जाकर श्री रामचन्द्रजी से यह बात न कहे॥1॥
उदउ करहु जनि रबि रघुकुल गुर। अवध बिलोकि सूल होइहि उर॥
भूप प्रीति कैकइ कठिनाई। उभय अवधि बिधि रची बनाई॥2॥
मूल
उदउ करहु जनि रबि रघुकुल गुर। अवध बिलोकि सूल होइहि उर॥
भूप प्रीति कैकइ कठिनाई। उभय अवधि बिधि रची बनाई॥2॥
भावार्थ
हे रघुकुल के गुरु (बडेरे, मूलपुरुष) सूर्य भगवान्! आप अपना उदय न करें। अयोध्या को (बेहाल) देखकर आपके हृदय में बडी पीडा होगी। राजा की प्रीति और कैकेयी की निष्ठुरता दोनों को ब्रह्मा ने सीमा तक रचकर बनाया है (अर्थात राजा प्रेम की सीमा है और कैकेयी निष्ठुरता की)॥2॥
बिलपत नृपहि भयउ भिनुसारा। बीना बेनु सङ्ख धुनि द्वारा॥
पढहिं भाट गुन गावहिं गायक। सुनत नृपहि जनु लागहिं सायक॥3॥
मूल
बिलपत नृपहि भयउ भिनुसारा। बीना बेनु सङ्ख धुनि द्वारा॥
पढहिं भाट गुन गावहिं गायक। सुनत नृपहि जनु लागहिं सायक॥3॥
भावार्थ
विलाप करते-करते ही राजा को सबेरा हो गया! राज द्वार पर वीणा, बाँसुरी और शङ्ख की ध्वनि होने लगी। भाट लोग विरुदावली पढ रहे हैं और गवैये गुणों का गान कर रहे हैं। सुनने पर राजा को वे बाण जैसे लगते हैं॥3॥
मङ्गल सकल सोहाहिं न कैसें। सहगामिनिहि बिभूषन जैसें॥
तेहि निसि नीद परी नहिं काहू। राम दरस लालसा उछाहू॥4॥
मूल
मङ्गल सकल सोहाहिं न कैसें। सहगामिनिहि बिभूषन जैसें॥
तेहि निसि नीद परी नहिं काहू। राम दरस लालसा उछाहू॥4॥
भावार्थ
राजा को ये सब मङ्गल साज कैसे नहीं सुहा रहे हैं, जैसे पति के साथ सती होने वाली स्त्री को आभूषण! श्री रामचन्द्रजी के दर्शन की लालसा और उत्साह के कारण उस रात्रि में किसी को भी नीन्द नहीं आई॥4॥