012

01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

नामु मन्थरा मन्दमति चेरी कैकइ केरि।
अजस पेटारी ताहि करि गई गिरा मति फेरि॥12॥

मूल

नामु मन्थरा मन्दमति चेरी कैकइ केरि।
अजस पेटारी ताहि करि गई गिरा मति फेरि॥12॥

भावार्थ

मन्थरा नाम की कैकेई की एक मन्दबुद्धि दासी थी, उसे अपयश की पिटारी बनाकर सरस्वती उसकी बुद्धि को फेरकर चली गईं॥12॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

दीख मन्थरा नगरु बनावा। मञ्जुल मङ्गल बाज बधावा॥
पूछेसि लोगन्ह काह उछाहू। राम तिलकु सुनि भा उर दाहू॥1॥

मूल

दीख मन्थरा नगरु बनावा। मञ्जुल मङ्गल बाज बधावा॥
पूछेसि लोगन्ह काह उछाहू। राम तिलकु सुनि भा उर दाहू॥1॥

भावार्थ

मन्थरा ने देखा कि नगर सजाया हुआ है। सुन्दर मङ्गलमय बधावे बज रहे हैं। उसने लोगों से पूछा कि कैसा उत्सव है? (उनसे) श्री रामचन्द्रजी के राजतिलक की बात सुनते ही उसका हृदय जल उठा॥1॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

करइ बिचारु कुबुद्धि कुजाती। होइ अकाजु कवनि बिधि राती॥
देखि लागि मधु कुटिल किराती। जिमि गवँ तकइ लेउँ केहि भाँती॥2॥

मूल

करइ बिचारु कुबुद्धि कुजाती। होइ अकाजु कवनि बिधि राती॥
देखि लागि मधु कुटिल किराती। जिमि गवँ तकइ लेउँ केहि भाँती॥2॥

भावार्थ

वह दुर्बुद्धि, नीच जाति वाली दासी विचार करने लगी कि किस प्रकार से यह काम रात ही रात में बिगड जाए, जैसे कोई कुटिल भीलनी शहद का छत्ता लगा देखकर घात लगाती है कि इसको किस तरह से उखाड लूँ॥2॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भरत मातु पहिं गइ बिलखानी। का अनमनि हसि कह हँसि रानी॥
ऊतरु देइ न लेइ उसासू। नारि चरित करि ढारइ आँसू॥3॥

मूल

भरत मातु पहिं गइ बिलखानी। का अनमनि हसि कह हँसि रानी॥
ऊतरु देइ न लेइ उसासू। नारि चरित करि ढारइ आँसू॥3॥

भावार्थ

वह उदास होकर भरतजी की माता कैकेयी के पास गई। रानी कैकेयी ने हँसकर कहा- तू उदास क्यों है? मन्थरा कुछ उत्तर नहीं देती, केवल लम्बी साँस ले रही है और त्रियाचरित्र करके आँसू ढरका रही है॥3॥

हँसि कह रानि गालु बड तोरें। दीन्ह लखन सिख अस मन मोरें॥
तबहुँ न बोल चेरि बडि पापिनि। छाडइ स्वास कारि जनु साँपिनि॥4॥

मूल

हँसि कह रानि गालु बड तोरें। दीन्ह लखन सिख अस मन मोरें॥
तबहुँ न बोल चेरि बडि पापिनि। छाडइ स्वास कारि जनु साँपिनि॥4॥

भावार्थ

रानी हँसकर कहने लगी कि तेरे बडे गाल हैं (तू बहुत बढ-बढकर बोलने वाली है)। मेरा मन कहता है कि लक्ष्मण ने तुझे कुछ सीख दी है (दण्ड दिया है)। तब भी वह महापापिनी दासी कुछ भी नहीं बोलती। ऐसी लम्बी साँस छोड रही है, मानो काली नागिन (फुफकार छोड रही) हो॥4॥