01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
एहि अवसर मङ्गलु परम सुनि रहँसेउ रनिवासु।
सोभत लखि बिधु बढत जनु बारिधि बीचि बिलासु॥7॥
मूल
एहि अवसर मङ्गलु परम सुनि रहँसेउ रनिवासु।
सोभत लखि बिधु बढत जनु बारिधि बीचि बिलासु॥7॥
भावार्थ
इसी समय यह परम मङ्गल समाचार सुनकर सारा रनिवास हर्षित हो उठा। जैसे चन्द्रमा को बढते देखकर समुद्र में लहरों का विलास (आनन्द) सुशोभित होता है॥7॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्रथम जाइ जिन्ह बचन सुनाए। भूषन बसन भूरि तिन्ह पाए॥
प्रेम पुलकि तन मन अनुरागीं। मङ्गल कलस सजन सब लागीं॥1॥
मूल
प्रथम जाइ जिन्ह बचन सुनाए। भूषन बसन भूरि तिन्ह पाए॥
प्रेम पुलकि तन मन अनुरागीं। मङ्गल कलस सजन सब लागीं॥1॥
भावार्थ
सबसे पहले (रनिवास में) जाकर जिन्होन्ने ये वचन (समाचार) सुनाए, उन्होन्ने बहुत से आभूषण और वस्त्र पाए। रानियों का शरीर प्रेम से पुलकित हो उठा और मन प्रेम में मग्न हो गया। वे सब मङ्गल कलश सजाने लगीं॥1॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
चौकें चारु सुमित्राँ पूरी। मनिमय बिबिध भाँति अति रूरी॥
आनँद मगन राम महतारी। दिए दान बहु बिप्र हँकारी॥2॥
मूल
चौकें चारु सुमित्राँ पूरी। मनिमय बिबिध भाँति अति रूरी॥
आनँद मगन राम महतारी। दिए दान बहु बिप्र हँकारी॥2॥
भावार्थ
सुमित्राजी ने मणियों (रत्नों) के बहुत प्रकार के अत्यन्त सुन्दर और मनोहर चौक पूरे। आनन्द में मग्न हुई श्री रामचन्द्रजी की माता कौसल्याजी ने ब्राह्मणों को बुलाकर बहुत दान दिए॥2॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पूजीं ग्रामदेबि सुर नागा। कहेउ बहोरि देन बलिभागा॥
जेहि बिधि होइ राम कल्यानू। देहु दया करि सो बरदानू॥3॥
मूल
पूजीं ग्रामदेबि सुर नागा। कहेउ बहोरि देन बलिभागा॥
जेहि बिधि होइ राम कल्यानू। देहु दया करि सो बरदानू॥3॥
भावार्थ
उन्होन्ने ग्रामदेवियों, देवताओं और नागों की पूजा की और फिर बलि भेण्ट देने को कहा (अर्थात कार्य सिद्ध होने पर फिर पूजा करने की मनौती मानी) और प्रार्थना की कि जिस प्रकार से श्री रामचन्द्रजी का कल्याण हो, दया करके वही वरदान दीजिए॥3॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
गावहिं मङ्गल कोकिलबयनीं। बिधुबदनीं मृगसावकनयनीं॥4॥
मूल
गावहिं मङ्गल कोकिलबयनीं। बिधुबदनीं मृगसावकनयनीं॥4॥
भावार्थ
कोयल की सी मीठी वाणी वाली, चन्द्रमा के समान मुख वाली और हिरन के बच्चे के से नेत्रों वाली स्त्रियाँ मङ्गलगान करने लगीं॥4॥