005

01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

कहेउ भूप मुनिराज कर जोइ जोइ आयसु होइ।
राम राज अभिषेक हित बेगि करहु सोइ सोइ॥5॥

मूल

कहेउ भूप मुनिराज कर जोइ जोइ आयसु होइ।
राम राज अभिषेक हित बेगि करहु सोइ सोइ॥5॥

भावार्थ

राजा ने कहा- श्री रामचन्द्र के राज्याभिषेक के लिए मुनिराज वशिष्ठजी की जो-जो आज्ञा हो, आप लोग वही सब तुरन्त करें॥5॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

हरषि मुनीस कहेउ मृदु बानी। आनहु सकल सुतीरथ पानी॥
औषध मूल फूल फल पाना। कहे नाम गनि मङ्गल नाना॥1॥

मूल

हरषि मुनीस कहेउ मृदु बानी। आनहु सकल सुतीरथ पानी॥
औषध मूल फूल फल पाना। कहे नाम गनि मङ्गल नाना॥1॥

भावार्थ

मुनिराज ने हर्षित होकर कोमल वाणी से कहा कि सम्पूर्ण श्रेष्ठ तीर्थों का जल ले आओ। फिर उन्होन्ने औषधि, मूल, फूल, फल और पत्र आदि अनेकों माङ्गलिक वस्तुओं के नाम गिनकर बताए॥1॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

चामर चरम बसन बहु भाँती। रोम पाट पट अगनित जाती॥
मनिगन मङ्गल बस्तु अनेका। जो जग जोगु भूप अभिषेका॥2॥

मूल

चामर चरम बसन बहु भाँती। रोम पाट पट अगनित जाती॥
मनिगन मङ्गल बस्तु अनेका। जो जग जोगु भूप अभिषेका॥2॥

भावार्थ

चँवर, मृगचर्म, बहुत प्रकार के वस्त्र, असङ्ख्यों जातियों के ऊनी और रेशमी कपडे, (नाना प्रकार की) मणियाँ (रत्न) तथा और भी बहुत सी मङ्गल वस्तुएँ, जो जगत में राज्याभिषेक के योग्य होती हैं, (सबको मँगाने की उन्होन्ने आज्ञा दी)॥2॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

बेद बिदित कहि सकल बिधाना। कहेउ रचहु पुर बिबिध बिताना॥
सफल रसाल पूगफल केरा। रोपहु बीथिन्ह पुर चहुँ फेरा॥3॥

मूल

बेद बिदित कहि सकल बिधाना। कहेउ रचहु पुर बिबिध बिताना॥
सफल रसाल पूगफल केरा। रोपहु बीथिन्ह पुर चहुँ फेरा॥3॥

भावार्थ

मुनि ने वेदों में कहा हुआ सब विधान बताकर कहा- नगर में बहुत से मण्डप (चँदोवे) सजाओ। फलों समेत आम, सुपारी और केले के वृक्ष नगर की गलियों में चारों ओर रोप दो॥3॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

रचहु मञ्जु मनि चौकें चारू। कहहु बनावन बेगि बजारू॥
पूजहु गनपति गुर कुलदेवा। सब बिधि करहु भूमिसुर सेवा॥4॥

मूल

रचहु मञ्जु मनि चौकें चारू। कहहु बनावन बेगि बजारू॥
पूजहु गनपति गुर कुलदेवा। सब बिधि करहु भूमिसुर सेवा॥4॥

भावार्थ

सुन्दर मणियों के मनोहर चौक पुरवाओ और बाजार को तुरन्त सजाने के लिए कह दो। श्री गणेशजी, गुरु और कुलदेवता की पूजा करो और भूदेव ब्राह्मणों की सब प्रकार से सेवा करो॥4॥