004

01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

बेगि बिलम्बु न करिअ नृप साजिअ सबुइ समाजु।
सुदिन सुमङ्गलु तबहिं जब रामु होहिं जुबराजु॥4॥

मूल

बेगि बिलम्बु न करिअ नृप साजिअ सबुइ समाजु।
सुदिन सुमङ्गलु तबहिं जब रामु होहिं जुबराजु॥4॥

भावार्थ

हे राजन्‌! अब देर न कीजिए, शीघ्र सब सामान सजाइए। शुभ दिन और सुन्दर मङ्गल तभी है, जब श्री रामचन्द्रजी युवराज हो जाएँ (अर्थात उनके अभिषेक के लिए सभी दिन शुभ और मङ्गलमय हैं)॥4॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

मुदित महीपति मन्दिर आए। सेवक सचिव सुमन्त्रु बोलाए॥
कहि जयजीव सीस तिन्ह नाए। भूप सुमङ्गल बचन सुनाए॥1॥

मूल

मुदित महीपति मन्दिर आए। सेवक सचिव सुमन्त्रु बोलाए॥
कहि जयजीव सीस तिन्ह नाए। भूप सुमङ्गल बचन सुनाए॥1॥

भावार्थ

राजा आनन्दित होकर महल में आए और उन्होन्ने सेवकों को तथा मन्त्री सुमन्त्र को बुलवाया। उन लोगों ने ‘जय-जीव’ कहकर सिर नवाए। तब राजा ने सुन्दर मङ्गलमय वचन (श्री रामजी को युवराज पद देने का प्रस्ताव) सुनाए॥1॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

जौं पाँचहि मत लागै नीका। करहु हरषि हियँ रामहि टीका॥2॥

मूल

जौं पाँचहि मत लागै नीका। करहु हरषि हियँ रामहि टीका॥2॥

भावार्थ

(और कहा-) यदि पञ्चों को (आप सबको) यह मत अच्छा लगे, तो हृदय में हर्षित होकर आप लोग श्री रामचन्द्र का राजतिलक कीजिए॥2॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

मन्त्री मुदित सुनत प्रिय बानी। अभिमत बिरवँ परेउ जनु पानी॥
बिनती सचिव करहिं कर जोरी। जिअहु जगतपति बरिस करोरी॥3॥

मूल

मन्त्री मुदित सुनत प्रिय बानी। अभिमत बिरवँ परेउ जनु पानी॥
बिनती सचिव करहिं कर जोरी। जिअहु जगतपति बरिस करोरी॥3॥

भावार्थ

इस प्रिय वाणी को सुनते ही मन्त्री ऐसे आनन्दित हुए मानो उनके मनोरथ रूपी पौधे पर पानी पड गया हो। मन्त्री हाथ जोडकर विनती करते हैं कि हे जगत्पति! आप करोडों वर्ष जिएँ॥3॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

जग मङ्गल भल काजु बिचारा। बेगिअ नाथ न लाइअ बारा॥
नृपहि मोदु सुनि सचिव सुभाषा। बढत बौण्ड जनु लही सुसाखा॥4॥

मूल

जग मङ्गल भल काजु बिचारा। बेगिअ नाथ न लाइअ बारा॥
नृपहि मोदु सुनि सचिव सुभाषा। बढत बौण्ड जनु लही सुसाखा॥4॥

भावार्थ

आपने जगतभर का मङ्गल करने वाला भला काम सोचा है। हे नाथ! शीघ्रता कीजिए, देर न लगाइए। मन्त्रियों की सुन्दर वाणी सुनकर राजा को ऐसा आनन्द हुआ मानो बढती हुई बेल सुन्दर डाली का सहारा पा गई हो॥4॥