361

01 सोरठा

विश्वास-प्रस्तुतिः

सिय रघुबीर बिबाहु जे सप्रेम गावहिं सुनहिं।
तिन्ह कहुँ सदा उछाहु मङ्गलायतन राम जसु॥361॥

मूल

सिय रघुबीर बिबाहु जे सप्रेम गावहिं सुनहिं।
तिन्ह कहुँ सदा उछाहु मङ्गलायतन राम जसु॥361॥

भावार्थ

श्री सीताजी और श्री रघुनाथजी के विवाह प्रसङ्ग को जो लोग प्रेमपूर्वक गाएँ-सुनेङ्गे, उनके लिए सदा उत्साह (आनन्द) ही उत्साह है, क्योङ्कि श्री रामचन्द्रजी का यश मङ्गल का धाम है॥361॥

मासपारायण, बारहवाँ विश्राम
इति श्रीमद्रामचरितमानसे सकलकलिकलुषविध्वंसने प्रथमः सोपानः समाप्तः।
कलियुग के सम्पूर्ण पापों को विध्वंस करने वाले श्री रामचरित मानस का यह पहला सोपान समाप्त हुआ॥

(बालकाण्ड समाप्त)