01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
कीन्हि सौच सब सहज सुचि सरित पुनीत नहाइ।
प्रातक्रिया करि तात पहिं आए चारिउ भाइ॥358॥
मूल
कीन्हि सौच सब सहज सुचि सरित पुनीत नहाइ।
प्रातक्रिया करि तात पहिं आए चारिउ भाइ॥358॥
भावार्थ
स्वभाव से ही पवित्र चारों भाइयों ने सब शौचादि से निवृत्त होकर पवित्र सरयू नदी में स्नान किया और प्रातःक्रिया (सन्ध्या वन्दनादि) करके वे पिता के पास आए॥358॥
नवाह्नपारायण, तीसरा विश्राम
मूल
नवाह्नपारायण, तीसरा विश्राम
02 चौपाई
भूप बिलोकि लिए उर लाई। बैठे हरषि रजायसु पाई॥
देखि रामु सब सभा जुडानी। लोचन लाभ अवधि अनुमानी॥1॥
मूल
भूप बिलोकि लिए उर लाई। बैठे हरषि रजायसु पाई॥
देखि रामु सब सभा जुडानी। लोचन लाभ अवधि अनुमानी॥1॥
भावार्थ
राजा ने देखते ही उन्हें हृदय से लगा लिया। तदनन्तर वे आज्ञा पाकर हर्षित होकर बैठ गए। श्री रामचन्द्रजी के दर्शन कर और नेत्रों के लाभ की बस यही सीमा है, ऐसा अनुमान कर सारी सभा शीतल हो गई। (अर्थात सबके तीनों प्रकार के ताप सदा के लिए मिट गए)॥1॥
पुनि बसिष्टु मुनि कौसिकु आए। सुभग आसनन्हि मुनि बैठाए॥
सुतन्ह समेत पूजि पद लागे। निरखि रामु दोउ गुर अनुरागे॥2॥
मूल
पुनि बसिष्टु मुनि कौसिकु आए। सुभग आसनन्हि मुनि बैठाए॥
सुतन्ह समेत पूजि पद लागे। निरखि रामु दोउ गुर अनुरागे॥2॥
भावार्थ
फिर मुनि वशिष्ठजी और विश्वामित्रजी आए। राजा ने उनको सुन्दर आसनों पर बैठाया और पुत्रों समेत उनकी पूजा करके उनके चरणों लगे। दोनों गुरु श्री रामजी को देखकर प्रेम में मुग्ध हो गए॥2॥
कहहिं बसिष्टु धरम इतिहासा। सुनहिं महीसु सहित रनिवासा॥
मुनि मन अगम गाधिसुत करनी। मुदित बसिष्ठ बिपुल बिधि बरनी॥3॥
मूल
कहहिं बसिष्टु धरम इतिहासा। सुनहिं महीसु सहित रनिवासा॥
मुनि मन अगम गाधिसुत करनी। मुदित बसिष्ठ बिपुल बिधि बरनी॥3॥
भावार्थ
वशिष्ठजी धर्म के इतिहास कह रहे हैं और राजा रनिवास सहित सुन रहे हैं, जो मुनियों के मन को भी अगम्य है, ऐसी विश्वामित्रजी की करनी को वशिष्ठजी ने आनन्दित होकर बहुत प्रकार से वर्णन किया॥3॥
बोले बामदेउ सब साँची। कीरति कलित लोक तिहुँ माची॥
सुनि आनन्दु भयउ सब काहू। राम लखन उर अधिक उछाहू॥4॥
मूल
बोले बामदेउ सब साँची। कीरति कलित लोक तिहुँ माची॥
सुनि आनन्दु भयउ सब काहू। राम लखन उर अधिक उछाहू॥4॥
भावार्थ
वामदेवजी बोले- ये सब बातें सत्य हैं। विश्वामित्रजी की सुन्दर कीर्ति तीनों लोकों में छाई हुई है। यह सुनकर सब किसी को आनन्द हुआ। श्री राम-लक्ष्मण के हृदय में अधिक उत्साह (आनन्द) हुआ॥4॥