01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
राम प्रतोषीं मातु सब कहि बिनीत बर बैन।
सुमिरि सम्भु गुरु बिप्र पद किए नीदबस नैन॥357॥
मूल
राम प्रतोषीं मातु सब कहि बिनीत बर बैन।
सुमिरि सम्भु गुरु बिप्र पद किए नीदबस नैन॥357॥
भावार्थ
विनय भरे उत्तम वचन कहकर श्री रामचन्द्रजी ने सब माताओं को सन्तुष्ट किया। फिर शिवजी, गुरु और ब्राह्मणों के चरणों का स्मरण कर नेत्रों को नीन्द के वश किया। (अर्थात वे सो रहे)॥357॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
नीदउँ बदन सोह सुठि लोना। मनहुँ साँझ सरसीरुह सोना॥
घर घर करहिं जागरन नारीं। देहिं परसपर मङ्गल गारीं॥1॥
मूल
नीदउँ बदन सोह सुठि लोना। मनहुँ साँझ सरसीरुह सोना॥
घर घर करहिं जागरन नारीं। देहिं परसपर मङ्गल गारीं॥1॥
भावार्थ
नीन्द में भी उनका अत्यन्त सलोना मुखडा ऐसा सोह रहा था, मानो सन्ध्या के समय का लाल कमल सोह रहा हो। स्त्रियाँ घर-घर जागरण कर रही हैं और आपस में (एक-दूसरी को) मङ्गलमयी गालियाँ दे रही हैं॥1॥
पुरी बिराजति राजति रजनी। रानीं कहहिं बिलोकहु सजनी॥
सुन्दर बधुन्ह सासु लै सोईं। फनिकन्ह जनु सिरमनि उर गोईं॥2॥
मूल
पुरी बिराजति राजति रजनी। रानीं कहहिं बिलोकहु सजनी॥
सुन्दर बधुन्ह सासु लै सोईं। फनिकन्ह जनु सिरमनि उर गोईं॥2॥
भावार्थ
रानियाँ कहती हैं- हे सजनी! देखो, (आज) रात्रि की कैसी शोभा है, जिससे अयोध्यापुरी विशेष शोभित हो रही है! (यों कहती हुई) सासुएँ सुन्दर बहुओं को लेकर सो गईं, मानो सर्पों ने अपने सिर की मणियों को हृदय में छिपा लिया है॥2॥
प्रात पुनीत काल प्रभु जागे। अरुनचूड बर बोलन लागे॥
बन्दि मागधन्हि गुनगन गाए। पुरजन द्वार जोहारन आए॥3॥
मूल
प्रात पुनीत काल प्रभु जागे। अरुनचूड बर बोलन लागे॥
बन्दि मागधन्हि गुनगन गाए। पुरजन द्वार जोहारन आए॥3॥
भावार्थ
प्रातःकाल पवित्र ब्रह्म मुहूर्त में प्रभु जागे। मुर्गे सुन्दर बोलने लगे। भाट और मागधों ने गुणों का गान किया तथा नगर के लोग द्वार पर जोहार करने को आए॥3॥
बन्दि बिप्र सुर गुर पितु माता। पाइ असीस मुदित सब भ्राता॥
जननिन्ह सादर बदन निहारे। भूपति सङ्ग द्वार पगु धारे॥4॥
मूल
बन्दि बिप्र सुर गुर पितु माता। पाइ असीस मुदित सब भ्राता॥
जननिन्ह सादर बदन निहारे। भूपति सङ्ग द्वार पगु धारे॥4॥
भावार्थ
ब्राह्मणों, देवताओं, गुरु, पिता और माताओं की वन्दना करके आशीर्वाद पाकर सब भाई प्रसन्न हुए। माताओं ने आदर के साथ उनके मुखों को देखा। फिर वे राजा के साथ दरवाजे (बाहर) पधारे॥4॥