01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
एहि सुख ते सत कोटि गुन पावहिं मातु अनन्दु।
भाइन्ह सहित बिआहि घर आए रघुकुलचन्दु॥1॥
मूल
एहि सुख ते सत कोटि गुन पावहिं मातु अनन्दु।
भाइन्ह सहित बिआहि घर आए रघुकुलचन्दु॥1॥
भावार्थ
इन सुखों से भी सौ करोड गुना बढकर आनन्द माताएँ पा रही हैं, क्योङ्कि रघुकुल के चन्द्रमा श्री रामजी विवाह कर के भाइयों सहित घर आए हैं॥1॥
लोक रीति जननीं करहिं बर दुलहिनि सकुचाहिं।
मोदु बिनोदु बिलोकि बड रामु मनहिं मुसुकाहिं॥2॥
मूल
लोक रीति जननीं करहिं बर दुलहिनि सकुचाहिं।
मोदु बिनोदु बिलोकि बड रामु मनहिं मुसुकाहिं॥2॥
भावार्थ
माताएँ लोकरीति करती हैं और दूलह-दुलहिनें सकुचाते हैं। इस महान आनन्द और विनोद को देखकर श्री रामचन्द्रजी मन ही मन मुस्कुरा रहे हैं॥2॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
देव पितर पूजे बिधि नीकी। पूजीं सकल बासना जी की॥
सबहि बन्दि माँगहिं बरदाना। भाइन्ह सहित राम कल्याना॥1॥
मूल
देव पितर पूजे बिधि नीकी। पूजीं सकल बासना जी की॥
सबहि बन्दि माँगहिं बरदाना। भाइन्ह सहित राम कल्याना॥1॥
भावार्थ
मन की सभी वासनाएँ पूरी हुई जानकर देवता और पितरों का भलीभाँति पूजन किया। सबकी वन्दना करके माताएँ यही वरदान माँगती हैं कि भाइयों सहित श्री रामजी का कल्याण हो॥1॥
अन्तरहित सुर आसिष देहीं। मुदित मातु अञ्चल भरि लेहीं॥
भूपति बोलि बराती लीन्हे। जान बसन मनि भूषन दीन्हे॥2॥
मूल
अन्तरहित सुर आसिष देहीं। मुदित मातु अञ्चल भरि लेहीं॥
भूपति बोलि बराती लीन्हे। जान बसन मनि भूषन दीन्हे॥2॥
भावार्थ
देवता छिपे हुए (अन्तरिक्ष से) आशीर्वाद दे रहे हैं और माताएँ आनन्दित हो आँचल भरकर ले रही हैं। तदनन्तर राजा ने बारातियों को बुलवा लिया और उन्हें सवारियाँ, वस्त्र, मणि (रत्न) और आभूषणादि दिए॥2॥
आयसु पाइ राखि उर रामहि। मुदित गए सब निज निज धामहि॥
पुर नर नारि सकल पहिराए। घर घर बाजन लगे बधाए॥3॥
मूल
आयसु पाइ राखि उर रामहि। मुदित गए सब निज निज धामहि॥
पुर नर नारि सकल पहिराए। घर घर बाजन लगे बधाए॥3॥
भावार्थ
आज्ञा पाकर, श्री रामजी को हृदय में रखकर वे सब आनन्दित होकर अपने-अपने घर गए। नगर के समस्त स्त्री-पुरुषों को राजा ने कपडे और गहने पहनाए। घर-घर बधावे बजने लगे॥3॥
जाचक जन जाचहिं जोइ जोई। प्रमुदित राउ देहिं सोइ सोई॥
सेवक सकल बजनिआ नाना। पूरन किए दान सनमाना॥4॥
मूल
जाचक जन जाचहिं जोइ जोई। प्रमुदित राउ देहिं सोइ सोई॥
सेवक सकल बजनिआ नाना। पूरन किए दान सनमाना॥4॥
भावार्थ
याचक लोग जो-जो माँगते हैं, विशेष प्रसन्न होकर राजा उन्हें वही-वही देते हैं। सम्पूर्ण सेवकों और बाजे वालों को राजा ने नाना प्रकार के दान और सम्मान से सन्तुष्ट किया॥4॥