345

01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

दिए दान बिप्रन्ह बिपुल पूजि गनेस पुरारि।
प्रमुदित परम दरिद्र जनु पाइ पदारथ चारि॥345॥

मूल

दिए दान बिप्रन्ह बिपुल पूजि गनेस पुरारि।
प्रमुदित परम दरिद्र जनु पाइ पदारथ चारि॥345॥

भावार्थ

गणेशजी और त्रिपुरारि शिवजी का पूजन करके उन्होन्ने ब्राह्मणों को बहुत सा दान दिया। वे ऐसी परम प्रसन्न हुईं, मानो अत्यन्त दरिद्री चारों पदार्थ पा गया हो॥345॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

मोद प्रमोद बिबस सब माता। चलहिं न चरन सिथिल भए गाता॥
राम दरस हित अति अनुरागीं। परिछनि साजु सजन सब लागीं॥1॥

मूल

मोद प्रमोद बिबस सब माता। चलहिं न चरन सिथिल भए गाता॥
राम दरस हित अति अनुरागीं। परिछनि साजु सजन सब लागीं॥1॥

भावार्थ

सुख और महान आनन्द से विवश होने के कारण सब माताओं के शरीर शिथिल हो गए हैं, उनके चरण चलते नहीं हैं। श्री रामचन्द्रजी के दर्शनों के लिए वे अत्यन्त अनुराग में भरकर परछन का सब सामान सजाने लगीं॥1॥

बिबिध बिधान बाजने बाजे। मङ्गल मुदित सुमित्राँ साजे॥
हरद दूब दधि पल्लव फूला। पान पूगफल मङ्गल मूला॥2॥

मूल

बिबिध बिधान बाजने बाजे। मङ्गल मुदित सुमित्राँ साजे॥
हरद दूब दधि पल्लव फूला। पान पूगफल मङ्गल मूला॥2॥

भावार्थ

अनेकों प्रकार के बाजे बजते थे। सुमित्राजी ने आनन्दपूर्वक मङ्गल साज सजाए। हल्दी, दूब, दही, पत्ते, फूल, पान और सुपारी आदि मङ्गल की मूल वस्तुएँ,॥2॥

अच्छत अङ्कुर लोचन लाजा। मञ्जुल मञ्जरि तुलसि बिराजा॥
छुहे पुरट घट सहज सुहाए। मदन सकुन जनु नीड बनाए॥3॥

मूल

अच्छत अङ्कुर लोचन लाजा। मञ्जुल मञ्जरि तुलसि बिराजा॥
छुहे पुरट घट सहज सुहाए। मदन सकुन जनु नीड बनाए॥3॥

भावार्थ

तथा अक्षत (चावल), अँखुए, गोरोचन, लावा और तुलसी की सुन्दर मञ्जरियाँ सुशोभित हैं। नाना रङ्गों से चित्रित किए हुए सहज सुहावने सुवर्ण के कलश ऐसे मालूम होते हैं, मानो कामदेव के पक्षियों ने घोंसले बनाए हों॥3॥

सगुन सुगन्ध न जाहिं बखानी। मङ्गल सकल सजहिं सब रानी॥
रचीं आरतीं बहतु बिधाना। मुदित करहिं कल मङ्गल गाना॥4॥

मूल

सगुन सुगन्ध न जाहिं बखानी। मङ्गल सकल सजहिं सब रानी॥
रचीं आरतीं बहतु बिधाना। मुदित करहिं कल मङ्गल गाना॥4॥

भावार्थ

शकुन की सुगन्धित वस्तुएँ बखानी नहीं जा सकतीं। सब रानियाँ सम्पूर्ण मङ्गल साज सज रही हैं। बहुत प्रकार की आरती बनाकर वे आनन्दित हुईं सुन्दर मङ्गलगान कर रही हैं॥4॥