343

01 दोहा

बीच बीच बर बास करि मग लोगन्ह सुख देत।
अवध समीप पुनीत दिन पहुँची आइ जनेत॥343॥

मूल

बीच बीच बर बास करि मग लोगन्ह सुख देत।
अवध समीप पुनीत दिन पहुँची आइ जनेत॥343॥

भावार्थ

बीच-बीच में सुन्दर मुकाम करती हुई तथा मार्ग के लोगों को सुख देती हुई वह बारात पवित्र दिन में अयोध्यापुरी के समीप आ पहुँची॥343॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

हने निसान पनव बर बाजे। भेरि सङ्ख धुनि हय गय गाजे॥
झाँझि बिरव डिण्डिमीं सुहाई। सरस राग बाजहिं सहनाई॥1॥

मूल

हने निसान पनव बर बाजे। भेरि सङ्ख धुनि हय गय गाजे॥
झाँझि बिरव डिण्डिमीं सुहाई। सरस राग बाजहिं सहनाई॥1॥

भावार्थ

नगाडों पर चोटें पडने लगीं, सुन्दर ढोल बजने लगे। भेरी और शङ्ख की बडी आवाज हो रही है, हाथी-घोडे गरज रहे हैं। विशेष शब्द करने वाली झाँझें, सुहावनी डफलियाँ तथा रसीले राग से शहनाइयाँ बज रही हैं॥1॥

पुर जन आवत अकनि बराता। मुदित सकल पुलकावलि गाता॥
निज निज सुन्दर सदन सँवारे। हाट बाट चौहटपुर द्वारे॥2॥

मूल

पुर जन आवत अकनि बराता। मुदित सकल पुलकावलि गाता॥
निज निज सुन्दर सदन सँवारे। हाट बाट चौहटपुर द्वारे॥2॥

भावार्थ

बारात को आती हुई सुनकर नगर निवासी प्रसन्न हो गए। सबके शरीरों पर पुलकावली छा गई। सबने अपने-अपने सुन्दर घरों, बाजारों, गलियों, चौराहों और नगर के द्वारों को सजाया॥2॥

गलीं सकल अरगजाँ सिञ्चाईं। जहँ तहँ चौकें चारु पुराईं॥
बना बजारु न जाइ बखाना। तोरन केतु पताक बिताना॥3॥

मूल

गलीं सकल अरगजाँ सिञ्चाईं। जहँ तहँ चौकें चारु पुराईं॥
बना बजारु न जाइ बखाना। तोरन केतु पताक बिताना॥3॥

भावार्थ

सारी गलियाँ अरगजे से सिञ्चाई गईं, जहाँ-तहाँ सुन्दर चौक पुराए गए। तोरणों ध्वजा-पताकाओं और मण्डपों से बाजार ऐसा सजा कि जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता॥3॥

सफल पूगफल कदलि रसाला। रोपे बकुल कदम्ब तमाला॥
लगे सुभग तरु परसत धरनी। मनिमय आलबाल कल करनी॥4॥

मूल

सफल पूगफल कदलि रसाला। रोपे बकुल कदम्ब तमाला॥
लगे सुभग तरु परसत धरनी। मनिमय आलबाल कल करनी॥4॥

भावार्थ

फल सहित सुपारी, केला, आम, मौलसिरी, कदम्ब और तमाल के वृक्ष लगाए गए। वे लगे हुए सुन्दर वृक्ष (फलों के भार से) पृथ्वी को छू रहे हैं। उनके मणियों के थाले बडी सुन्दर कारीगरी से बनाए गए हैं॥4॥