01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्रेमबिबस परिवारु सबु जानि सुलगन नरेस।
कुअँरि चढाईं पालकिन्ह सुमिरे सिद्धि गनेस॥338॥
मूल
प्रेमबिबस परिवारु सबु जानि सुलगन नरेस।
कुअँरि चढाईं पालकिन्ह सुमिरे सिद्धि गनेस॥338॥
भावार्थ
सारा परिवार प्रेम में विवश है। राजा ने सुन्दर मुहूर्त जानकर सिद्धि सहित गणेशजी का स्मरण करके कन्याओं को पालकियों पर चढाया॥338॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
बहुबिधि भूप सुता समुझाईं। नारिधरमु कुलरीति सिखाईं॥
दासीं दास दिए बहुतेरे। सुचि सेवक जे प्रिय सिय केरे॥1॥
मूल
बहुबिधि भूप सुता समुझाईं। नारिधरमु कुलरीति सिखाईं॥
दासीं दास दिए बहुतेरे। सुचि सेवक जे प्रिय सिय केरे॥1॥
भावार्थ
राजा ने पुत्रियों को बहुत प्रकार से समझाया और उन्हें स्त्रियों का धर्म और कुल की रीति सिखाई। बहुत से दासी-दास दिए, जो सीताजी के प्रिय और विश्वास पात्र सेवक थे॥1॥
सीय चलत ब्याकुल पुरबासी। होहिं सगुन सुभ मङ्गल रासी॥
भूसुर सचिव समेत समाजा। सङ्ग चले पहुँचावन राजा॥2॥
मूल
सीय चलत ब्याकुल पुरबासी। होहिं सगुन सुभ मङ्गल रासी॥
भूसुर सचिव समेत समाजा। सङ्ग चले पहुँचावन राजा॥2॥
भावार्थ
सीताजी के चलते समय जनकपुरवासी व्याकुल हो गए। मङ्गल की राशि शुभ शकुन हो रहे हैं। ब्राह्मण और मन्त्रियों के समाज सहित राजा जनकजी उन्हें पहुँचाने के लिए साथ चले॥2॥
समय बिलोकि बाजने बाजे। रथ गज बाजि बरातिन्ह साजे॥
दसरथ बिप्र बोलि सब लीन्हे। दान मान परिपूरन कीन्हे॥3॥
मूल
समय बिलोकि बाजने बाजे। रथ गज बाजि बरातिन्ह साजे॥
दसरथ बिप्र बोलि सब लीन्हे। दान मान परिपूरन कीन्हे॥3॥
भावार्थ
समय देखकर बाजे बजने लगे। बारातियों ने रथ, हाथी और घोडे सजाए। दशरथजी ने सब ब्राह्मणों को बुला लिया और उन्हें दान और सम्मान से परिपूर्ण कर दिया॥3॥
चरन सरोज धूरि धरि सीसा। मुदित महीपति पाइ असीसा॥
सुमिरि गजाननु कीन्ह पयाना। मङ्गल मूल सगुन भए नाना॥4॥
मूल
चरन सरोज धूरि धरि सीसा। मुदित महीपति पाइ असीसा॥
सुमिरि गजाननु कीन्ह पयाना। मङ्गल मूल सगुन भए नाना॥4॥
भावार्थ
उनके चरण कमलों की धूलि सिर पर रखकर और आशीर्वाद पाकर राजा प्रसन्न हुए। गणेश जी का स्मरण कर के यात्रा की, नाना प्रकार के मङ्गल के मूल सगुन हुए॥4॥