330

01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

बामदेउ अरु देवरिषि बालमीकि जाबालि।
आए मुनिबर निकर तब कौसिकादि तपसालि॥330॥

मूल

बामदेउ अरु देवरिषि बालमीकि जाबालि।
आए मुनिबर निकर तब कौसिकादि तपसालि॥330॥

भावार्थ

तब वामदेव, देवर्षि नारद, वाल्मीकि, जाबालि और विश्वामित्र आदि तपस्वी श्रेष्ठ मुनियों के समूह के समूह आए॥330॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

दण्ड प्रनाम सबहि नृप कीन्हे। पूजि सप्रेम बरासन दीन्हे॥
चारि लच्छ बर धेनु मगाईं। काम सुरभि सम सील सुहाईं॥1॥

मूल

दण्ड प्रनाम सबहि नृप कीन्हे। पूजि सप्रेम बरासन दीन्हे॥
चारि लच्छ बर धेनु मगाईं। काम सुरभि सम सील सुहाईं॥1॥

भावार्थ

राजा ने सबको दण्डवत्‌ प्रणाम किया और प्रेम सहित पूजन करके उन्हें उत्तम आसन दिए। चार लाख उत्तम गायें मँगवाईं, जो कामधेनु के समान अच्छे स्वभाव वाली और सुहावनी थीं॥1॥

सब बिधि सकल अलङ्कृत कीन्हीं। मुदित महिप महिदेवन्ह दीन्हीं॥
करत बिनय बहु बिधि नरनाहू। लहेउँ आजु जग जीवन लाहू॥2॥

मूल

सब बिधि सकल अलङ्कृत कीन्हीं। मुदित महिप महिदेवन्ह दीन्हीं॥
करत बिनय बहु बिधि नरनाहू। लहेउँ आजु जग जीवन लाहू॥2॥

भावार्थ

उन सबको सब प्रकार से (गहनों-कपडों से) सजाकर राजा ने प्रसन्न होकर भूदेव ब्राह्मणों को दिया। राजा बहुत तरह से विनती कर रहे हैं कि जगत में मैन्ने आज ही जीने का लाभ पाया॥2॥

पाइ असीस महीसु अनन्दा। लिए बोलि पुनि जाचक बृन्दा॥
कनक बसन मनि हय गय स्यन्दन। दिए बूझि रुचि रबिकुलनन्दन॥3॥

मूल

पाइ असीस महीसु अनन्दा। लिए बोलि पुनि जाचक बृन्दा॥
कनक बसन मनि हय गय स्यन्दन। दिए बूझि रुचि रबिकुलनन्दन॥3॥

भावार्थ

(ब्राह्मणों से) आशीर्वाद पाकर राजा आनन्दित हुए। फिर याचकों के समूहों को बुलवा लिया और सबको उनकी रुचि पूछकर सोना, वस्त्र, मणि, घोडा, हाथी और रथ (जिसने जो चाहा सो) सूर्यकुल को आनन्दित करने वाले दशरथजी ने दिए॥3॥

चले पढत गावत गुन गाथा। जय जय जय दिनकर कुल नाथा॥
एहि बिधि राम बिआह उछाहू। सकइ न बरनि सहस मुख जाहू॥4॥

मूल

चले पढत गावत गुन गाथा। जय जय जय दिनकर कुल नाथा॥
एहि बिधि राम बिआह उछाहू। सकइ न बरनि सहस मुख जाहू॥4॥

भावार्थ

वे सब गुणानुवाद गाते और ‘सूर्यकुल के स्वामी की जय हो, जय हो, जय हो’ कहते हुए चले। इस प्रकार श्री रामचन्द्रजी के विवाह का उत्सव हुआ, जिन्हें सहस्र मुख हैं, वे शेषजी भी उसका वर्णन नहीं कर सकते॥4॥