01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
रामचन्द्र मुख चन्द्र छबि लोचन चारु चकोर।
करत पान सादर सकल प्रेमु प्रमोदु न थोर॥321॥
मूल
रामचन्द्र मुख चन्द्र छबि लोचन चारु चकोर।
करत पान सादर सकल प्रेमु प्रमोदु न थोर॥321॥
भावार्थ
श्री रामचन्द्रजी के मुख रूपी चन्द्रमा की छबि को सभी के सुन्दर नेत्र रूपी चकोर आदरपूर्वक पान कर रहे हैं, प्रेम और आनन्द कम नहीं है (अर्थात बहुत है)॥321॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
समउ बिलोकि बसिष्ठ बोलाए। सादर सतानन्दु सुनि आए॥
बेगि कुअँरि अब आनहु जाई। चले मुदित मुनि आयसु पाई॥1॥
मूल
समउ बिलोकि बसिष्ठ बोलाए। सादर सतानन्दु सुनि आए॥
बेगि कुअँरि अब आनहु जाई। चले मुदित मुनि आयसु पाई॥1॥
भावार्थ
समय देखकर वशिष्ठजी ने शतानन्दजी को आदरपूर्वक बुलाया। वे सुनकर आदर के साथ आए। वशिष्ठजी ने कहा- अब जाकर राजकुमारी को शीघ्र ले आइए। मुनि की आज्ञा पाकर वे प्रसन्न होकर चले॥1॥
रानी सुनि उपरोहित बानी। प्रमुदित सखिन्ह समेत सयानी॥
बिप्र बधू कुल बृद्ध बोलाईं। करि कुल रीति सुमङ्गल गाईं॥2॥
मूल
रानी सुनि उपरोहित बानी। प्रमुदित सखिन्ह समेत सयानी॥
बिप्र बधू कुल बृद्ध बोलाईं। करि कुल रीति सुमङ्गल गाईं॥2॥
भावार्थ
बुद्धिमती रानी पुरोहित की वाणी सुनकर सखियों समेत बडी प्रसन्न हुईं। ब्राह्मणों की स्त्रियों और कुल की बूढी स्त्रियों को बुलाकर उन्होन्ने कुलरीति करके सुन्दर मङ्गल गीत गाए॥2॥
नारि बेष जे सुर बर बामा। सकल सुभायँ सुन्दरी स्यामा॥
तिन्हहि देखि सुखु पावहिं नारी। बिनु पहिचानि प्रानहु ते प्यारीं॥3॥
मूल
नारि बेष जे सुर बर बामा। सकल सुभायँ सुन्दरी स्यामा॥
तिन्हहि देखि सुखु पावहिं नारी। बिनु पहिचानि प्रानहु ते प्यारीं॥3॥
भावार्थ
श्रेष्ठ देवाङ्गनाएँ, जो सुन्दर मनुष्य-स्त्रियों के वेश में हैं, सभी स्वभाव से ही सुन्दरी और श्यामा (सोलह वर्ष की अवस्था वाली) हैं। उनको देखकर रनिवास की स्त्रियाँ सुख पाती हैं और बिना पहिचान के ही वे सबको प्राणों से भी प्यारी हो रही हैं॥3॥
बार बार सनमानहिं रानी। उमा रमा सारद सम जानी॥
सीय सँवारि समाजु बनाई। मुदित मण्डपहिं चलीं लवाई॥4॥
मूल
बार बार सनमानहिं रानी। उमा रमा सारद सम जानी॥
सीय सँवारि समाजु बनाई। मुदित मण्डपहिं चलीं लवाई॥4॥
भावार्थ
उन्हें पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती के समान जानकर रानी बार-बार उनका सम्मान करती हैं। (रनिवास की स्त्रियाँ और सखियाँ) सीताजी का श्रृङ्गार करके, मण्डली बनाकर, प्रसन्न होकर उन्हें मण्डप में लिवा चलीं॥4॥
03 छन्द
विश्वास-प्रस्तुतिः
चलि ल्याइ सीतहि सखीं सादर सजि सुमङ्गल भामिनीं।
नवसप्त साजें सुन्दरी सब मत्त कुञ्जर गामिनीं॥
कल गान सुनि मुनि ध्यान त्यागहिं काम कोकिल लाजहीं।
मञ्जीर नूपुर कलित कङ्कन ताल गति बर बाजहीं॥
मूल
चलि ल्याइ सीतहि सखीं सादर सजि सुमङ्गल भामिनीं।
नवसप्त साजें सुन्दरी सब मत्त कुञ्जर गामिनीं॥
कल गान सुनि मुनि ध्यान त्यागहिं काम कोकिल लाजहीं।
मञ्जीर नूपुर कलित कङ्कन ताल गति बर बाजहीं॥
भावार्थ
सुन्दर मङ्गल का साज सजकर (रनिवास की) स्त्रियाँ और सखियाँ आदर सहित सीताजी को लिवा चलीं।
सभी सुन्दरियाँ सोलहों श्रृङ्गार किए हुए मतवाले हाथियों की चाल से चलने वाली हैं। उनके मनोहर गान को सुनकर मुनि ध्यान छोड देते हैं और कामदेव की कोयलें भी लजा जाती हैं। पायजेब, पैञ्जनी और सुन्दर कङ्कण ताल की गति पर बडे सुन्दर बज रहे हैं।