315

01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

राम रूपु नख सिख सुभग बारहिं बार निहारि।
पुलक गात लोचन सजल उमा समेत पुरारि॥315॥

मूल

राम रूपु नख सिख सुभग बारहिं बार निहारि।
पुलक गात लोचन सजल उमा समेत पुरारि॥315॥

भावार्थ

नख से शिखा तक श्री रामचन्द्रजी के सुन्दर रूप को बार-बार देखते हुए पार्वतीजी सहित श्री शिवजी का शरीर पुलकित हो गया और उनके नेत्र (प्रेमाश्रुओं के) जल से भर गए॥315॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

केकि कण्ठ दुति स्यामल अङ्गा। तडित बिनिन्दक बसन सुरङ्गा॥
ब्याह बिभूषन बिबिध बनाए। मङ्गल सब सब भाँति सुहाए॥1॥

मूल

केकि कण्ठ दुति स्यामल अङ्गा। तडित बिनिन्दक बसन सुरङ्गा॥
ब्याह बिभूषन बिबिध बनाए। मङ्गल सब सब भाँति सुहाए॥1॥

भावार्थ

रामजी का मोर के कण्ठ की सी कान्तिवाला (हरिताभ) श्याम शरीर है। बिजली का अत्यन्त निरादर करने वाले प्रकाशमय सुन्दर (पीत) रङ्ग के वस्त्र हैं। सब मङ्गल रूप और सब प्रकार के सुन्दर भाँति-भाँति के विवाह के आभूषण शरीर पर सजाए हुए हैं॥1॥

सरद बिमल बिधु बदनु सुहावन। नयन नवल राजीव लजावन॥
सकल अलौकिक सुन्दरताई। कहि न जाई मनहीं मन भाई॥2॥

मूल

सरद बिमल बिधु बदनु सुहावन। नयन नवल राजीव लजावन॥
सकल अलौकिक सुन्दरताई। कहि न जाई मनहीं मन भाई॥2॥

भावार्थ

उनका सुन्दर मुख शरत्पूर्णिमा के निर्मल चन्द्रमा के समान और (मनोहर) नेत्र नवीन कमल को लजाने वाले हैं। सारी सुन्दरता अलौकिक है। (माया की बनी नहीं है, दिव्य सच्चिदानन्दमयी है) वह कहीं नहीं जा सकती, मन ही मन बहुत प्रिय लगती है॥2॥

बन्धु मनोहर सोहहिं सङ्गा। जात नचावत चपल तुरङ्गा।
राजकुअँर बर बाजि देखावहिं। बंस प्रसंसक बिरिद सुनावहिं॥3॥

मूल

बन्धु मनोहर सोहहिं सङ्गा। जात नचावत चपल तुरङ्गा।
राजकुअँर बर बाजि देखावहिं। बंस प्रसंसक बिरिद सुनावहिं॥3॥

भावार्थ

साथ में मनोहर भाई शोभित हैं, जो चञ्चल घोडों को नचाते हुए चले जा रहे हैं। राजकुमार श्रेष्ठ घोडों को (उनकी चाल को) दिखला रहे हैं और वंश की प्रशंसा करने वाले (मागध भाट) विरुदावली सुना रहे हैं॥3॥

जेहि तुरङ्ग पर रामु बिराजे। गति बिलोकि खगनायकु लाजे॥
कहि न जाइ सब भाँति सुहावा। बाजि बेषु जनु काम बनावा॥4॥

मूल

जेहि तुरङ्ग पर रामु बिराजे। गति बिलोकि खगनायकु लाजे॥
कहि न जाइ सब भाँति सुहावा। बाजि बेषु जनु काम बनावा॥4॥

भावार्थ

जिस घोडे पर श्री रामजी विराजमान हैं, उसकी (तेज) चाल देखकर गरुड भी लजा जाते हैं, उसका वर्णन नहीं हो सकता, वह सब प्रकार से सुन्दर है। मानो कामदेव ने ही घोडे का वेष धारण कर लिया हो॥4॥

03 छन्द

जनु बाजि बेषु बनाइ मनसिजु राम हित अति सोहई।
आपनें बय बल रूप गुन गति सकल भुवन बिमोहई॥
जगमगत जीनु जराव जोति सुमोति मनि मानिक लगे।
किङ्किनि ललाम लगामु ललित बिलोकिसुर नर मुनि ठगे॥

मूल

जनु बाजि बेषु बनाइ मनसिजु राम हित अति सोहई।
आपनें बय बल रूप गुन गति सकल भुवन बिमोहई॥
जगमगत जीनु जराव जोति सुमोति मनि मानिक लगे।
किङ्किनि ललाम लगामु ललित बिलोकिसुर नर मुनि ठगे॥

भावार्थ

मानो श्री रामचन्द्रजी के लिए कामदेव घोडे का वेश बनाकर अत्यन्त शोभित हो रहा है।

वह अपनी अवस्था, बल, रूप, गुण और चाल से समस्त लोकों को मोहित कर रहा है। उसकी सुन्दर घुँघरू लगी ललित लगाम को देखकर देवता, मनुष्य और मुनि सभी ठगे जाते हैं।