01 सोरठा
विश्वास-प्रस्तुतिः
कहहिं परस्पर नारि बारि बिलोचन पुलक तन।
सखि सबु करब पुरारि पुन्य पयोनिधि भूप दोउ॥311॥
मूल
कहहिं परस्पर नारि बारि बिलोचन पुलक तन।
सखि सबु करब पुरारि पुन्य पयोनिधि भूप दोउ॥311॥
भावार्थ
नेत्रों में (प्रेमाश्रुओं का) जल भरकर पुलकित शरीर से स्त्रियाँ आपस में कह रही हैं कि हे सखी! दोनों राजा पुण्य के समुद्र हैं, त्रिपुरारी शिवजी सब मनोरथ पूर्ण करेङ्गे॥311॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
एहि बिधि सकल मनोरथ करहीं। आनँद उमगि उमगि उर भरहीं॥
जे नृप सीय स्वयम्बर आए। देखि बन्धु सब तिन्ह सुख पाए॥1॥
मूल
एहि बिधि सकल मनोरथ करहीं। आनँद उमगि उमगि उर भरहीं॥
जे नृप सीय स्वयम्बर आए। देखि बन्धु सब तिन्ह सुख पाए॥1॥
भावार्थ
इस प्रकार सब मनोरथ कर रही हैं और हृदय को उमङ्ग-उमङ्गकर (उत्साहपूर्वक) आनन्द से भर रही हैं। सीताजी के स्वयंवर में जो राजा आए थे, उन्होन्ने भी चारों भाइयों को देखकर सुख पाया॥1॥
कहत राम जसु बिसद बिसाला। निज निज भवन गए महिपाला॥
गए बीति कछु दिन एहि भाँती। प्रमुदित पुरजन सकल बराती॥2॥
मूल
कहत राम जसु बिसद बिसाला। निज निज भवन गए महिपाला॥
गए बीति कछु दिन एहि भाँती। प्रमुदित पुरजन सकल बराती॥2॥
भावार्थ
श्री रामचन्द्रजी का निर्मल और महान यश कहते हुए राजा लोग अपने-अपने घर गए। इस प्रकार कुछ दिन बीत गए। जनकपुर निवासी और बाराती सभी बडे आनन्दित हैं॥2॥
मङ्गल मूल लगन दिनु आवा। हिम रितु अगहनु मासु सुहावा॥
ग्रह तिथि नखतु जोगु बर बारू। लगन सोधि बिधि कीन्ह बिचारू॥3॥
मूल
मङ्गल मूल लगन दिनु आवा। हिम रितु अगहनु मासु सुहावा॥
ग्रह तिथि नखतु जोगु बर बारू। लगन सोधि बिधि कीन्ह बिचारू॥3॥
भावार्थ
मङ्गलों का मूल लग्न का दिन आ गया। हेमन्त ऋतु और सुहावना अगहन का महीना था। ग्रह, तिथि, नक्षत्र, योग और वार श्रेष्ठ थे। लग्न (मुहूर्त) शोधकर ब्रह्माजी ने उस पर विचार किया,॥3॥
पठै दीन्हि नारद सन सोई। गनी जनक के गनकन्ह जोई॥
सुनी सकल लोगन्ह यह बाता। कहहिं जोतिषी आहिं बिधाता॥4॥
मूल
पठै दीन्हि नारद सन सोई। गनी जनक के गनकन्ह जोई॥
सुनी सकल लोगन्ह यह बाता। कहहिं जोतिषी आहिं बिधाता॥4॥
भावार्थ
और उस (लग्न पत्रिका) को नारदजी के हाथ (जनकजी के यहाँ) भेज दिया। जनकजी के ज्योतिषियों ने भी वही गणना कर रखी थी। जब सब लोगों ने यह बात सुनी तब वे कहने लगे- यहाँ के ज्योतिषी भी ब्रह्मा ही हैं॥4॥