01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
पुरजन परिजन जातिजन जाचक मन्त्री मीत।
मिले जथाबिधि सबहि प्रभु परम कृपाल बिनीत॥308॥
मूल
पुरजन परिजन जातिजन जाचक मन्त्री मीत।
मिले जथाबिधि सबहि प्रभु परम कृपाल बिनीत॥308॥
भावार्थ
तदन्तर परम कृपालु और विनयी श्री रामचन्द्रजी अयोध्यावासियों, कुटुम्बियों, जाति के लोगों, याचकों, मन्त्रियों और मित्रों सभी से यथा योग्य मिले॥308॥
रामहि देखि बरात जुडानी। प्रीति कि रीति न जाति बखानी॥
नृप समीप सोहहिं सुत चारी। जनु धन धरमादिक तनुधारी॥1॥
मूल
रामहि देखि बरात जुडानी। प्रीति कि रीति न जाति बखानी॥
नृप समीप सोहहिं सुत चारी। जनु धन धरमादिक तनुधारी॥1॥
भावार्थ
श्री रामचन्द्रजी को देखकर बारात शीतल हुई (राम के वियोग में सबके हृदय में जो आग जल रही थी, वह शान्त हो गई)। प्रीति की रीति का बखान नहीं हो सकता। राजा के पास चारों पुत्र ऐसी शोभा पा रहे हैं, मानो अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष शरीर धारण किए हुए हों॥1॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
सुतन्ह समेत दसरथहि देखी। मुदित नगर नर नारि बिसेषी॥
सुमन बरिसि सुर हनहिं निसाना। नाकनटीं नाचहिं करि गाना॥2॥
मूल
सुतन्ह समेत दसरथहि देखी। मुदित नगर नर नारि बिसेषी॥
सुमन बरिसि सुर हनहिं निसाना। नाकनटीं नाचहिं करि गाना॥2॥
भावार्थ
पुत्रों सहित दशरथजी को देखकर नगर के स्त्री-पुरुष बहुत ही प्रसन्न हो रहे हैं। (आकाश में) देवता फूलों की वर्षा करके नगाडे बजा रहे हैं और अप्सराएँ गा-गाकर नाच रही हैं॥2॥
सतानन्द अरु बिप्र सचिव गन। मागध सूत बिदुष बन्दीजन॥
सहित बरात राउ सनमाना। आयसु मागि फिरे अगवाना॥3॥
मूल
सतानन्द अरु बिप्र सचिव गन। मागध सूत बिदुष बन्दीजन॥
सहित बरात राउ सनमाना। आयसु मागि फिरे अगवाना॥3॥
भावार्थ
अगवानी में आए हुए शतानन्दजी, अन्य ब्राह्मण, मन्त्रीगण, मागध, सूत, विद्वान और भाटों ने बारात सहित राजा दशरथजी का आदर-सत्कार किया। फिर आज्ञा लेकर वे वापस लौटे॥3॥
प्रथम बरात लगन तें आई। तातें पुर प्रमोदु अधिकाई॥
ब्रह्मानन्दु लोग सब लहहीं। बढहुँ दिवस निसि बिधि सन कहहीं॥4॥
मूल
प्रथम बरात लगन तें आई। तातें पुर प्रमोदु अधिकाई॥
ब्रह्मानन्दु लोग सब लहहीं। बढहुँ दिवस निसि बिधि सन कहहीं॥4॥
भावार्थ
बारात लग्न के दिन से पहले आ गई है, इससे जनकपुर में अधिक आनन्द छा रहा है। सब लोग ब्रह्मानन्द प्राप्त कर रहे हैं और विधाता से मनाकर कहते हैं कि दिन-रात बढ जाएँ (बडे हो जाएँ)॥4॥