305

01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

हरषि परसपर मिलन हित कछुक चले बगमेल।
जनु आनन्द समुद्र दुइ मिलत बिहाइ सुबेल॥305॥

मूल

हरषि परसपर मिलन हित कछुक चले बगमेल।
जनु आनन्द समुद्र दुइ मिलत बिहाइ सुबेल॥305॥

भावार्थ

(बाराती तथा अगवानों में से) कुछ लोग परस्पर मिलने के लिए हर्ष के मारे बाग छोडकर (सरपट) दौड चले और ऐसे मिले मानो आनन्द के दो समुद्र मर्यादा छोडकर मिलते हों॥305॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

बरषि सुमन सुर सुन्दरि गावहिं। मुदित देव दुन्दुभीं बजावहिं॥
बस्तु सकल राखीं नृप आगें। बिनय कीन्हि तिन्ह अति अनुरागें॥1॥

मूल

बरषि सुमन सुर सुन्दरि गावहिं। मुदित देव दुन्दुभीं बजावहिं॥
बस्तु सकल राखीं नृप आगें। बिनय कीन्हि तिन्ह अति अनुरागें॥1॥

भावार्थ

देवसुन्दरियाँ फूल बरसाकर गीत गा रही हैं और देवता आनन्दित होकर नगाडे बजा रहे हैं। (अगवानी में आए हुए) उन लोगों ने सब चीजें दशरथजी के आगे रख दीं और अत्यन्त प्रेम से विनती की॥1॥

प्रेम समेत रायँ सबु लीन्हा। भै बकसीस जाचकन्हि दीन्हा॥
करि पूजा मान्यता बडाई। जनवासे कहुँ चले लवाई॥2॥

मूल

प्रेम समेत रायँ सबु लीन्हा। भै बकसीस जाचकन्हि दीन्हा॥
करि पूजा मान्यता बडाई। जनवासे कहुँ चले लवाई॥2॥

भावार्थ

राजा दशरथजी ने प्रेम सहित सब वस्तुएँ ले लीं, फिर उनकी बख्शीशें होने लगीं और वे याचकों को दे दी गईं। तदनन्तर पूजा, आदर-सत्कार और बडाई करके अगवान लोग उनको जनवासे की ओर लिवा ले चले॥2॥

बसन बिचित्र पाँवडे परहीं। देखि धनदु धन मदु परिहरहीं॥
अति सुन्दर दीन्हेउ जनवासा। जहँ सब कहुँ सब भाँति सुपासा॥3॥

मूल

बसन बिचित्र पाँवडे परहीं। देखि धनदु धन मदु परिहरहीं॥
अति सुन्दर दीन्हेउ जनवासा। जहँ सब कहुँ सब भाँति सुपासा॥3॥

भावार्थ

विलक्षण वस्त्रों के पाँवडे पड रहे हैं, जिन्हें देखकर कुबेर भी अपने धन का अभिमान छोड देते हैं। बडा सुन्दर जनवासा दिया गया, जहाँ सबको सब प्रकार का सुभीता था॥3॥

जानी सियँ बरात पुर आई। कछु निज महिमा प्रगटि जनाई॥
हृदयँ सुमिरि सब सिद्धि बोलाईं। भूप पहुनई करन पठाईं॥4॥

मूल

जानी सियँ बरात पुर आई। कछु निज महिमा प्रगटि जनाई॥
हृदयँ सुमिरि सब सिद्धि बोलाईं। भूप पहुनई करन पठाईं॥4॥

भावार्थ

सीताजी ने बारात जनकपुर में आई जानकर अपनी कुछ महिमा प्रकट करके दिखलाई। हृदय में स्मरणकर सब सिद्धियों को बुलाया और उन्हें राजा दशरथजी की मेहमानी करने के लिए भेजा॥4॥