304

01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

आवत जानि बरात बर सुनि गहगहे निसान।
सजि गज रथ पदचर तुरग लेन चले अगवान॥304॥

मूल

आवत जानि बरात बर सुनि गहगहे निसान।
सजि गज रथ पदचर तुरग लेन चले अगवान॥304॥

भावार्थ

बडे जोर से बजते हुए नगाडों की आवाज सुनकर श्रेष्ठ बारात को आती हुई जानकर अगवानी करने वाले हाथी, रथ, पैदल और घोडे सजाकर बारात लेने चले॥304॥

मासपारायण दसवाँ विश्राम

मूल

मासपारायण दसवाँ विश्राम

02 चौपाई

कनक कलस भरि कोपर थारा। भाजन ललित अनेक प्रकारा॥
भरे सुधा सम सब पकवाने। नाना भाँति न जाहिं बखाने॥1॥

मूल

कनक कलस भरि कोपर थारा। भाजन ललित अनेक प्रकारा॥
भरे सुधा सम सब पकवाने। नाना भाँति न जाहिं बखाने॥1॥

भावार्थ

(दूध, शर्बत, ठण्डाई, जल आदि से) भरकर सोने के कलश तथा जिनका वर्णन नहीं हो सकता ऐसे अमृत के समान भाँति-भाँति के सब पकवानों से भरे हुए परात, थाल आदि अनेक प्रकार के सुन्दर बर्तन,॥1॥

फल अनेक बर बस्तु सुहाईं। हरषि भेण्ट हित भूप पठाईं॥
भूषन बसन महामनि नाना। खग मृग हय गय बहुबिधि जाना॥2॥

मूल

फल अनेक बर बस्तु सुहाईं। हरषि भेण्ट हित भूप पठाईं॥
भूषन बसन महामनि नाना। खग मृग हय गय बहुबिधि जाना॥2॥

भावार्थ

उत्तम फल तथा और भी अनेकों सुन्दर वस्तुएँ राजा ने हर्षित होकर भेण्ट के लिए भेजीं। गहने, कपडे, नाना प्रकार की मूल्यवान मणियाँ (रत्न), पक्षी, पशु, घोडे, हाथी और बहुत तरह की सवारियाँ,॥2॥

मङ्गल सगुन सुगन्ध सुहाए। बहुत भाँति महिपाल पठाए॥
दधि चिउरा उपहार अपारा। भरि भरि काँवरि चले कहारा॥3॥

मूल

मङ्गल सगुन सुगन्ध सुहाए। बहुत भाँति महिपाल पठाए॥
दधि चिउरा उपहार अपारा। भरि भरि काँवरि चले कहारा॥3॥

भावार्थ

तथा बहुत प्रकार के सुगन्धित एवं सुहावने मङ्गल द्रव्य और शगुन के पदार्थ राजा ने भेजे। दही, चिउडा और अगणित उपहार की चीजें काँवरों में भर-भरकर कहार चले॥3॥

अगवानन्ह जब दीखि बराता। उर आनन्दु पुलक भर गाता॥
देखि बनाव सहित अगवाना। मुदित बरातिन्ह हने निसाना॥4॥

मूल

अगवानन्ह जब दीखि बराता। उर आनन्दु पुलक भर गाता॥
देखि बनाव सहित अगवाना। मुदित बरातिन्ह हने निसाना॥4॥

भावार्थ

अगवानी करने वालों को जब बारात दिखाई दी, तब उनके हृदय में आनन्द छा गया और शरीर रोमाञ्च से भर गया। अगवानों को सज-धज के साथ देखकर बारातियों ने प्रसन्न होकर नगाडे बजाए॥4॥