01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
मङ्गलमय कल्यानमय अभिमत फल दातार।
जनु सब साचे होन हित भए सगुन एक बार॥303॥
मूल
मङ्गलमय कल्यानमय अभिमत फल दातार।
जनु सब साचे होन हित भए सगुन एक बार॥303॥
भावार्थ
सभी मङ्गलमय, कल्याणमय और मनोवाञ्छित फल देने वाले शकुन मानो सच्चे होने के लिए एक ही साथ हो गए॥303॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
मङ्गल सगुन सुगम सब ताकें। सगुन ब्रह्म सुन्दर सुत जाकें॥
राम सरिस बरु दुलहिनि सीता। समधी दसरथु जनकु पुनीता॥1॥
मूल
मङ्गल सगुन सुगम सब ताकें। सगुन ब्रह्म सुन्दर सुत जाकें॥
राम सरिस बरु दुलहिनि सीता। समधी दसरथु जनकु पुनीता॥1॥
भावार्थ
स्वयं सगुण ब्रह्म जिसके सुन्दर पुत्र हैं, उसके लिए सब मङ्गल शकुन सुलभ हैं। जहाँ श्री रामचन्द्रजी सरीखे दूल्हा और सीताजी जैसी दुलहिन हैं तथा दशरथजी और जनकजी जैसे पवित्र समधी हैं,॥1॥
सुनि अस ब्याहु सगुन सब नाचे। अब कीन्हे बिरञ्चि हम साँचे॥
एहि बिधि कीन्ह बरात पयाना। हय गय गाजहिं हने निसाना॥2॥
मूल
सुनि अस ब्याहु सगुन सब नाचे। अब कीन्हे बिरञ्चि हम साँचे॥
एहि बिधि कीन्ह बरात पयाना। हय गय गाजहिं हने निसाना॥2॥
भावार्थ
ऐसा ब्याह सुनकर मानो सभी शकुन नाच उठे (और कहने लगे-) अब ब्रह्माजी ने हमको सच्चा कर दिया। इस तरह बारात ने प्रस्थान किया। घोडे, हाथी गरज रहे हैं और नगाडों पर चोट लग रही है॥2॥
आवत जानि भानुकुल केतू। सरितन्हि जनक बँधाए सेतू॥
बीच-बीच बर बास बनाए। सुरपुर सरिस सम्पदा छाए॥3॥
मूल
आवत जानि भानुकुल केतू। सरितन्हि जनक बँधाए सेतू॥
बीच-बीच बर बास बनाए। सुरपुर सरिस सम्पदा छाए॥3॥
भावार्थ
सूर्यवंश के पताका स्वरूप दशरथजी को आते हुए जानकर जनकजी ने नदियों पर पुल बँधवा दिए। बीच-बीच में ठहरने के लिए सुन्दर घर (पडाव) बनवा दिए, जिनमें देवलोक के समान सम्पदा छाई है,॥3॥
असन सयन बर बसन सुहाए। पावहिं सब निज निज मन भाए॥
नित नूतन सुख लखि अनुकूले। सकल बरातिन्ह मन्दिर भूले॥4॥
मूल
असन सयन बर बसन सुहाए। पावहिं सब निज निज मन भाए॥
नित नूतन सुख लखि अनुकूले। सकल बरातिन्ह मन्दिर भूले॥4॥
भावार्थ
और जहाँ बारात के सब लोग अपने-अपने मन की पसन्द के अनुसार सुहावने उत्तम भोजन, बिस्तर और वस्त्र पाते हैं। मन के अनुकूल नित्य नए सुखों को देखकर सभी बारातियों को अपने घर भूल गए॥4॥