302

01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

तुरग नचावहिं कुअँर बर अकनि मृदङ्ग निसान।
नागर नट चितवहिं चकित डगहिं न ताल बँधान॥302॥

मूल

तुरग नचावहिं कुअँर बर अकनि मृदङ्ग निसान।
नागर नट चितवहिं चकित डगहिं न ताल बँधान॥302॥

भावार्थ

सुन्दर राजकुमार मृदङ्ग और नगाडे के शब्द सुनकर घोडों को उन्हीं के अनुसार इस प्रकार नचा रहे हैं कि वे ताल के बन्धान से जरा भी डिगते नहीं हैं। चतुर नट चकित होकर यह देख रहे हैं॥302॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

बनइ न बरनत बनी बराता। होहिं सगुन सुन्दर सुभदाता॥
चारा चाषु बाम दिसि लेई। मनहुँ सकल मङ्गल कहि देई॥1॥

मूल

बनइ न बरनत बनी बराता। होहिं सगुन सुन्दर सुभदाता॥
चारा चाषु बाम दिसि लेई। मनहुँ सकल मङ्गल कहि देई॥1॥

भावार्थ

बारात ऐसी बनी है कि उसका वर्णन करते नहीं बनता। सुन्दर शुभदायक शकुन हो रहे हैं। नीलकण्ठ पक्षी बाईं ओर चारा ले रहा है, मानो सम्पूर्ण मङ्गलों की सूचना दे रहा हो॥1॥

दाहिन काग सुखेत सुहावा। नकुल दरसु सब काहूँ पावा॥
सानुकूल बह त्रिबिध बयारी। सघट सबाल आव बर नारी॥2॥

मूल

दाहिन काग सुखेत सुहावा। नकुल दरसु सब काहूँ पावा॥
सानुकूल बह त्रिबिध बयारी। सघट सबाल आव बर नारी॥2॥

भावार्थ

दाहिनी ओर कौआ सुन्दर खेत में शोभा पा रहा है। नेवले का दर्शन भी सब किसी ने पाया। तीनों प्रकार की (शीतल, मन्द, सुगन्धित) हवा अनुकूल दिशा में चल रही है। श्रेष्ठ (सुहागिनी) स्त्रियाँ भरे हुए घडे और गोद में बालक लिए आ रही हैं॥2॥

लोवा फिरि फिरि दरसु देखावा। सुरभी सनमुख सिसुहि पिआवा॥
मृगमाला फिरि दाहिनि आई। मङ्गल गन जनु दीन्हि देखाई॥3॥

मूल

लोवा फिरि फिरि दरसु देखावा। सुरभी सनमुख सिसुहि पिआवा॥
मृगमाला फिरि दाहिनि आई। मङ्गल गन जनु दीन्हि देखाई॥3॥

भावार्थ

लोमडी फिर-फिरकर (बार-बार) दिखाई दे जाती है। गायें सामने खडी बछडों को दूध पिलाती हैं। हरिनों की टोली (बाईं ओर से) घूमकर दाहिनी ओर को आई, मानो सभी मङ्गलों का समूह दिखाई दिया॥3॥

छेमकरी कह छेम बिसेषी। स्यामा बाम सुतरु पर देखी॥
सनमुख आयउ दधि अरु मीना। कर पुस्तक दुइ बिप्र प्रबीना॥4॥

मूल

छेमकरी कह छेम बिसेषी। स्यामा बाम सुतरु पर देखी॥
सनमुख आयउ दधि अरु मीना। कर पुस्तक दुइ बिप्र प्रबीना॥4॥

भावार्थ

क्षेमकरी (सफेद सिरवाली चील) विशेष रूप से क्षेम (कल्याण) कह रही है। श्यामा बाईं ओर सुन्दर पेड पर दिखाई पडी। दही, मछली और दो विद्वान ब्राह्मण हाथ में पुस्तक लिए हुए सामने आए॥4॥