301

01 दोहा

तेहिं रथ रुचिर बसिष्ठ कहुँ हरषि चढाई नरेसु।
आपु चढेउ स्यन्दन सुमिरि हर गुर गौरि गनेसु॥301॥

मूल

तेहिं रथ रुचिर बसिष्ठ कहुँ हरषि चढाई नरेसु।
आपु चढेउ स्यन्दन सुमिरि हर गुर गौरि गनेसु॥301॥

भावार्थ

उस सुन्दर रथ पर राजा वशिष्ठजी को हर्ष पूर्वक चढाकर फिर स्वयं शिव, गुरु, गौरी (पार्वती) और गणेशजी का स्मरण करके (दूसरे) रथ पर चढे॥301॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

सहित बसिष्ठ सोह नृप कैसें। सुर गुर सङ्ग पुरन्दर जैसें॥
करि कुल रीति बेद बिधि राऊ। देखि सबहि सब भाँति बनाऊ॥1॥

मूल

सहित बसिष्ठ सोह नृप कैसें। सुर गुर सङ्ग पुरन्दर जैसें॥
करि कुल रीति बेद बिधि राऊ। देखि सबहि सब भाँति बनाऊ॥1॥

भावार्थ

वशिष्ठजी के साथ (जाते हुए) राजा दशरथजी कैसे शोभित हो रहे हैं, जैसे देव गुरु बृहस्पतिजी के साथ इन्द्र हों। वेद की विधि से और कुल की रीति के अनुसार सब कार्य करके तथा सबको सब प्रकार से सजे देखकर,॥1॥

सुमिरि रामु गुर आयसु पाई। चले महीपति सङ्ख बजाई॥
हरषे बिबुध बिलोकि बराता। बरषहिं सुमन सुमङ्गल दाता॥2॥

मूल

सुमिरि रामु गुर आयसु पाई। चले महीपति सङ्ख बजाई॥
हरषे बिबुध बिलोकि बराता। बरषहिं सुमन सुमङ्गल दाता॥2॥

भावार्थ

श्री रामचन्द्रजी का स्मरण करके, गुरु की आज्ञा पाकर पृथ्वी पति दशरथजी शङ्ख बजाकर चले। बारात देखकर देवता हर्षित हुए और सुन्दर मङ्गलदायक फूलों की वर्षा करने लगे॥2॥

भयउ कोलाहल हय गय गाजे। ब्योम बरात बाजने बाजे॥
सुर नर नारि सुमङ्गल गाईं। सरस राग बाजहिं सहनाईं॥3॥

मूल

भयउ कोलाहल हय गय गाजे। ब्योम बरात बाजने बाजे॥
सुर नर नारि सुमङ्गल गाईं। सरस राग बाजहिं सहनाईं॥3॥

भावार्थ

बडा शोर मच गया, घोडे और हाथी गरजने लगे। आकाश में और बारात में (दोनों जगह) बाजे बजने लगे। देवाङ्गनाएँ और मनुष्यों की स्त्रियाँ सुन्दर मङ्गलगान करने लगीं और रसीले राग से शहनाइयाँ बजने लगीं॥3॥

घण्ट घण्टि धुनि बरनि न जाहीं। सरव करहिं पाइक फहराहीं॥
करहिं बिदूषक कौतुक नाना। हास कुसल कल गान सुजाना॥4॥

मूल

घण्ट घण्टि धुनि बरनि न जाहीं। सरव करहिं पाइक फहराहीं॥
करहिं बिदूषक कौतुक नाना। हास कुसल कल गान सुजाना॥4॥

भावार्थ

घण्टे-घण्टियों की ध्वनि का वर्णन नहीं हो सकता। पैदल चलने वाले सेवकगण अथवा पट्टेबाज कसरत के खेल कर रहे हैं और फहरा रहे हैं (आकाश में ऊँचे उछलते हुए जा रहे हैं।) हँसी करने में निपुण और सुन्दर गाने में चतुर विदूषक (मसखरे) तरह-तरह के तमाशे कर रहे हैं॥4॥