01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
सब कें उर निर्भर हरषु पूरित पुलक सरीर।
कबहिं देखिबे नयन भरि रामु लखनु दोउ बीर॥300॥
मूल
सब कें उर निर्भर हरषु पूरित पुलक सरीर।
कबहिं देखिबे नयन भरि रामु लखनु दोउ बीर॥300॥
भावार्थ
सबके हृदय में अपार हर्ष है और शरीर पुलक से भरे हैं। (सबको एक ही लालसा लगी है कि) हम श्री राम-लक्ष्मण दोनों भाइयों को नेत्र भरकर कब देखेङ्गे॥300॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
गरजहिं गज घण्टा धुनि घोरा। रथ रव बाजि हिंस चहु ओरा॥
निदरि घनहि घुर्म्मरहिं निसाना। निज पराइ कछु सुनिअ न काना॥1॥
मूल
गरजहिं गज घण्टा धुनि घोरा। रथ रव बाजि हिंस चहु ओरा॥
निदरि घनहि घुर्म्मरहिं निसाना। निज पराइ कछु सुनिअ न काना॥1॥
भावार्थ
हाथी गरज रहे हैं, उनके घण्टों की भीषण ध्वनि हो रही है। चारों ओर रथों की घरघराहट और घोडों की हिनहिनाहट हो रही है। बादलों का निरादर करते हुए नगाडे घोर शब्द कर रहे हैं। किसी को अपनी-पराई कोई बात कानों से सुनाई नहीं देती॥1॥
महा भीर भूपति के द्वारें। रज होइ जाइ पषान पबारें॥
चढी अटारिन्ह देखहिं नारीं। लिएँ आरती मङ्गल थारीं॥2॥
मूल
महा भीर भूपति के द्वारें। रज होइ जाइ पषान पबारें॥
चढी अटारिन्ह देखहिं नारीं। लिएँ आरती मङ्गल थारीं॥2॥
भावार्थ
राजा दशरथ के दरवाजे पर इतनी भारी भीड हो रही है कि वहाँ पत्थर फेङ्का जाए तो वह भी पिसकर धूल हो जाए। अटारियों पर चढी स्त्रियाँ मङ्गल थालों में आरती लिए देख रही हैं॥2॥
गावहिं गीत मनोहर नाना। अति आनन्दु न जाइ बखाना॥
तब सुमन्त्र दुइ स्यन्दन साजी। जोते रबि हय निन्दक बाजी॥3॥
मूल
गावहिं गीत मनोहर नाना। अति आनन्दु न जाइ बखाना॥
तब सुमन्त्र दुइ स्यन्दन साजी। जोते रबि हय निन्दक बाजी॥3॥
भावार्थ
और नाना प्रकार के मनोहर गीत गा रही हैं। उनके अत्यन्त आनन्द का बखान नहीं हो सकता। तब सुमन्त्रजी ने दो रथ सजाकर उनमें सूर्य के घोडों को भी मात करने वाले घोडे जोते॥3॥
दोउ रथ रुचिर भूप पहिं आने। नहिं सारद पहिं जाहिं बखाने॥
राज समाजु एक रथ साजा। दूसर तेज पुञ्ज अति भ्राजा॥4॥
मूल
दोउ रथ रुचिर भूप पहिं आने। नहिं सारद पहिं जाहिं बखाने॥
राज समाजु एक रथ साजा। दूसर तेज पुञ्ज अति भ्राजा॥4॥
भावार्थ
दोनों सुन्दर रथ वे राजा दशरथ के पास ले आए, जिनकी सुन्दरता का वर्णन सरस्वती से भी नहीं हो सकता। एक रथ पर राजसी सामान सजाया गया और दूसरा जो तेज का पुञ्ज और अत्यन्त ही शोभायमान था,॥4॥